पत्रकार राकेश अचल से बातचीत
एक जमाने में सत्ता प्रतिष्ठान की आँख की किरकिरी माने जाने वाला इंडियन एक्सप्रेस भी अब सत्ता प्रतिष्ठान की आँखों के लिए सुरमा बन गया है। अखबार द्वारा वर्ष 2022 के अत्याधिक शक्तिशाली 100 व्यक्तियों की सूची बनाई गयी है। इस सूची में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को नंबर एक पर रखा गया है ,और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। नंबर दो पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैं ,उन्हें यहां होना ही चाहिए । नंबर तीन पर मोहन भागवत हैं।
भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका परेशानी में हैं। दोनों ही देशों की आर्थिक हालत बेहद खराब हो चुकी हैं। दोनों ही देश अपने यहां हो रही उथल-पुथल के लिए दूसरों को जिम्मेदार बता रहे हैं। पाकिस्तान की उथल-पुथल के लिए अमेरिका को जिम्मेदार बताया जा रहा है और श्रीलंका की बदहाली के लिए तो चीन जिम्मेदार है ही।
पाकिस्तान में अब चुनाव होंगे, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने संसद भंग कर दी है। पीएम इमरान खान की सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गई है। पाकिस्तानी संसद के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
हास्य व्यंग्य का हंगामा। हास्य-व्यंग्य एवं मनोरंजन के कुछ पल। हँसने-हँसाने के लिये। Laughter is the best medicine - वो हम पर हँसें, हम उन पर हँसें और इस तरह सभी खुश और स्वस्थ रहें। टेपा क्या है? एक झलक टेपा सम्मेलन के एक रंग की।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने हिन्दुत्ववादी सख्त प्रशासक की छवि बनाई है, शिवराज सिंह चौहान भी वैसी बनाने की ओर अग्रसर हैं। कई मामलों में वे योगी से आगे भी हैं, लेकिन अब उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी अब बुलडोजर घूम रहे हैं। वैसे तो पहले कई बार शिवराज सिंह चौहान अपने सख्त प्रशासक होने का सबूत दे चुके हैं, लेकिन अब वे ज़्यादा खुलकर मैदान में हैं। पार्टी में भी कोई उनसे ज़्यादा छु-चपड़ नहीं कर रहा। स्पष्ट तौर पर मध्य प्रदेश विधानसभा का 2023 का चुनाव शिवराज सिंह चौहान के ही लड़ा जाएगा।
आर्थिक बदहाली झेल रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति ने 1 अप्रैल की रात पूरे देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर दी और यह कोई अप्रैल फूल का मजाक नहीं था। श्रीलंका में आपातकाल लागू है और कैबिनेट इस्तीफ़ा दे चुकी है। वास्तव में श्रीलंका तबाही के कगार पर हैं। चीन पिछले 8 साल से श्रीलंका को ख्वाब दिखा रहा है कि वह श्रीलंका को दुबई, हांगकांग या मोनाको की तरह बना देगा, लेकिन चीन ने श्रीलंका को भिखारी राष्ट्र बना दिया। श्रीलंका के नेताओं को लगता था कि चीन की गोद में बैठकर वे विकास कर लेंगे और इसी लालच में वे अपनी आजादी चीन को धीरे-धीरे सौंपते गए। चीन ने कोलम्बो के पास हाईटेक सिटी बनाने का ख्वाब दिखाया और कहा कि इस हाईटेक सिटी को दुबई की तर्ज पर विकसित किया जाएगा, जिससे श्रीलंका मालामाल हो जाएगा। बदले में चीन ने श्रीलंका के कोलम्बो के पास एक बंदरगाह 99 साल के लिए लीज पर ले लिया। उसमें यह शर्त भी जोड़ दी कि अगर चीन चाहेगा, तो यह लीज 99 साल के लिए और बढ़ सकती हैं। इसके साथ ही चीन ने कोलम्बो के पास अपना सामरिक ठिकाना बनाने की अनुमति भी ले ली और वहां अपने जहाजी बेड़े और पनडुब्बियां तैनात कर दी, ताकि वह भारत पर निगाह रख सकें।
शिवराज का बुलडोज़र, 60 करोड़ की ज़मीन मुक्त #IndoreDialogue | Narendra Nahta कांग्रेस नेता की 60 करोड़ की ज़मीन पर चला बुलडोज़र शिवराज सिंह चौहान यूपी के योगी आदित्यनाथ के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने रामपुर में आजम खान के साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर दिया था, उसी अंदाज में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी चल पड़े।
शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस के नेता नरेंद्र नाहटा के ट्रस्ट के विश्वविद्यालय की अवैध रूप से हथियाई गई 15 एकड़ जमीन पर बुलडोज़र चलवा दिया और ज़मीन को प्रशासन के कब्जे में दे दिया। इस जमीन की कीमत 60 करोड़ आंकी गई है।
इस जमीन पर मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री नरेंद्र नाहटा के परिवार के ट्रस्ट का कब्जा था। ट्रस्ट को 15 एकड़ जमीन अलाट हुई थी, लेकिन उस पर कब्जा कर लिया 30 एकड़ जमीन पर।
मंदसौर के कलेक्टर गौतम सिंह के अनुसार न्यायालय में भी यह बात साबित हो चुकी थी कि नाहटा परिवार के ट्रस्ट को 15 एकड़ जमीन दी गई थी, जिस पर नाश्ता परिवार के ट्रस्ट का मंदसौर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी चल रही थी।
रिया मुखर्जी ने आरआरआर फिल्म में संवाद और गीत लिखे हैं। वे रेडियो की दुनिया की दिग्गज हैं। आठ साल पहले उन्होंने रेडियो मिर्ची में नेशनल क्रिएटिव डायरेक्टर और एग्जीक्यूटिव वीपी का पद छोड़ दिया और अब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, ऐप्स (जैसे गाना, स्पोर्टिफाई , आडियेबल,अमेज़न म्युज़िक) आदि के लिए सलाहकार सेवा देती हैं। उनकी कम्पनी रिया मुखर्जी वर्ड पिक्चर्स दुनिया में अपने तरह की पहली कंपनी है जो पॉडकास्टर्स को ट्रेनिंग भी देती है।
मुख्यमंत्री सहित पूरी मध्य प्रदेश की सरकार पंचमढ़ी में 2 दिन के लिए विशेष बैठक का आयोजन कर रही है। यहां मंत्री अपना प्रेजेंटेशन देंगे और 2023 के लिए रणनीति बनाई जाएगी। इसे पिकनिक तो नहीं, लेकिन वाकिंग हॉलिडे जरूर कहा जा सकता है!
आर आर आर (हिन्दी नाम राइज़ रौर रिवोल्ट, मूल तेलुगु नाम रौद्रम रानम रुधिरम ) देखनीय है फिल्म है। फिल्म की पृष्ठभूमि स्वतंत्रता संग्राम बनाई गई है हालांकि यह फिल्म वास्तविकता के धरातल से दूर है तार्किक दृष्टि से भी फिल्म खरी नहीं उतरती , लेकिन फिल्म की नयनाभिराम प्रस्तुति, शानदार नृत्य-संयोजन, जबरदस्त एक्टिंग और डायरेक्शन इस फिल्म को देखनीय बना देते हैं। अगर आप इस फिल्म को थ्री डी में फिल्म देखें तो आपका अनुभव और भी जबरदस्त हो सकता है. कुल मिलाकर तीन घंटे की शानदार फिल्म है। मनोरंजन से भरपूर! पैसा वसूल !
श्रमिक संगठनों की दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल के कारण लोगों को हुई असुविधाओं को प्रचारित करने के लिए फेक न्यूज़ की फैक्ट्रियां सक्रिय हो गई है। हालांकि श्रम संगठनों की मांग सरकार की नीतियों से सम्बंधित हैं। इसके साथ ही मनरेगा के तहत काम करने वालों के लिए आबंटित धनराशि को बढ़ाने की मांग की जा रही है। देशव्यापी बंद इंटक, एनटीयूसी, एआईटीयूसी, सीटू, एसडब्ल्यूए, एलपीएफ आदि महत्वपूर्ण संगठनों के द्वारा आयोजित है। इस आंदोलन में कोयला, इस्पात, टेलीकॉम, इनकम टैक्स, बीमा, पोस्टल आदि विभागों के कर्मचारियों की वे यूनियन शामिल हैं, जो हमेशा ही देश भर में लगातार सक्रिय रही हैं।
द कश्मीर फाइल्स फिल्म कश्मीर के पुराने जख्मों पर बंधी पट्टी हटाने जैसी है। 1990 के दशक में कश्मीर में पाक समर्थक आतंकियों द्वाराकश्मीरी पंडितों पर किए गए जुल्मों की दिल दहला देने वाली तस्वीर। पहले दिन जिस तरह द कश्मीर फाइन्स का स्वागत किया गया, वह उल्लेखनीय हैं। फिल्म के दौरान कई बार दर्शक आंसू पोंछते नजर आए और कई बार भारत माता की जय के नारे भी सुनने को मिले। पहले दिन दर्शकों का जबरदस्त रिस्पांस इस फिल्म को मिला।
भिया, अक्षय कुमार की बच्चन पांडे को झेलना आसान बात नहीं है। अगर कोई आपको फिल्म का टिकट फ्री में दें तो भी यह फिल्म देखने मत जाइए और अगर कोई पॉपकॉर्न का कूपन भी साथ दे तो भी फिल्म देखने जाने का कष्ट ना करें। इस फिल्म को देखने से तो अच्छा है कि सोनी पर ठाकुर साहब वाली फिल्म सूर्यवंशम 1084 बार देख लो। यह अक्षय कुमार की गोविंदा छाप फ़िल्म है। बेसिर पैर कहानी और हिंसा का अतिरेक।
हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही यह बताते हो कि कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और वह अपना जनाधार खोती जा रही हैं, लेकिन नतीजे यह भी बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी कोई अपराजेय पार्टी नहीं हैं। उत्तरप्रदेश की ही बात करें, तो वहां भारतीय जनता पार्टी ने 55 सीटें गंवाई हैं, वहीं समाजवादी पार्टी ने 67 सीटें अधिक प्राप्त की हैं। कांग्रेस का जनाधार भले ही लगभग एक तिहाई रह गया हो और बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक भी खिसक गया हो, लेकिन इसका पूरा-पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी को नहीं मिल पाया। जनाधार खिसकने का लाभ उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी को मिला है और पंजाब में आम आदमी को। अब यह तय है कि आम आदमी पार्टी ने जिस तरह पंजाब में सत्ता हासिल की है, उसे देखते हुए वह दूसरे राज्यों की तरफ भी जायेगी ही।
दो-तीन दशकों से राजनीति में यह लगातार हो रहा है कि जब भी चुनाव के नतीजे आते हैं, उसमें अक्सर कांग्रेस को करारी शिकस्त मिलती है। कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता सोनिया गांधी जिंदाबाद, राहुल गांधी जिंदाबाद, प्रियंका गांधी वाड्रा जिंदाबाद के नारे लगाने लगते हैं। संगठन की सर्वोच्च कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होती है। हार पर चिंतन किया जाता है और यह निर्णय लिया जाता है कि मंथन जारी रहेगा। कांग्रेस अगले चुनाव में बहुत अच्छे से काम करेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी होता नजर नहीं आता। हर बार गांधी परिवार की जय जयकार और चिंतन के साथ सीडब्ल्यूसी की बैठक खत्म होती है। वही जुमले दोहराए जाते हैं। वही विश्वास व्यक्त किया जाता है और पार्टी फिर पुराने ढर्रे पर लौट आती है।
भारत की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में बंटवारा हो रहा है। देश का सबसे बड़ा मीडिया ग्रुप किस तरह से विघटन के कगार पर है। समीर जैन ने भारत में यह बात स्थापित करने की कोशिश की कि अखबार और पत्रिकाएं जन जागरण का माध्यम नहीं है। ये भी प्रोडक्ट हैं।समीर जैन कहते रहे हैं कि हम मूलत: विज्ञापन के व्यवसाय में है। अखबार में विज्ञापनों के अलावा जहां भी खाली जगह बचती हैं, वहां हम खबरें डाल देते हैं।
द कश्मीर फाइल्स फिल्म कश्मीर के पुराने जख्मों पर बंधी पट्टी हटाने जैसा है। 1990 के दशक में कश्मीर में पाक समर्थक आतंकियों द्वारा कश्मीरी पंडितों पर किए गए जुल्मों की दिल दहला देने वाली तस्वीर। राधेश्याम देशभर में 18000 से ज्यादा स्क्रीन्स पर प्रदर्शित हैं और द कश्मीर फाइन्स करीब 500 स्क्रीन्स पर, लेकिन फिर भी पहले दिन जिस तरह द कश्मीर फाइन्स का स्वागत किया गया, वह उल्लेखनीय हैं। फिल्म के दौरान कई बार दर्शक आंसू पोंछते नजर आए और कई बार भारत माता की जय के नारे भी सुनने को मिले। पहले दिन दर्शकों का जबरदस्त रिस्पांस इस फिल्म को मिला।
भारत की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में बंटवारा हो रहा है। जिस तरह धीरूभाई अम्बानी के निधन के बाद मुकेश और अनिल अम्बानी में टकराव हो रहा था, उसी तरह टाइम्स ग्रुप की चैयरपर्सन इंदु जैन के देहावसान के बाद उनके दोनों बेटों में टकराव चल रहा हैं। इसका हल बंटवारा समझा गया और अब बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हो गई। जल्द ही टाइम्स ग्रुप दो हिस्सों में बंट जाएगा। इसमें कितना समय लगेगा, यह देखना बाकी है। लेकिन बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
अगर आपने राधेश्याम फिल्म का ट्रेलर देखा हो, तो उसे ही 25-30 बार देख लीजिए, इंटरवल तक फिल्म वैसी ही है। उसके बाद एक मिक्सी में थोड़ी टाइटेनिक, थोड़ी बाहुबली और थोड़ी सी साहो मिलाकर घोंट लीजिए, हो गई राधेश्याम तैयार। फिल्म में वीएफएक्स का बेहतरीन उपयोग किया गया है और लोकेशन्स काफी सुंदर है। जिंदगी में पहली फिल्म देखी, जिसमें हीरो कोई हस्तरेखाविद की भूमिका में है और हस्तरेखाविद भी ऐसा कि जो भूत, भविष्य, वर्तमान सभी पढ़ लेता हैं। उसकी कोई भविष्यवाणी गलत साबित नहीं हो पाई। प्रधानमंत्री इमरजेंसी लगाएगी यह घोषणा भी हस्तरेखाविद प्रधानमंत्री की हथेली देखकर कर देता है। अब फिल्म देखने के बाद यह बात कही जा सकती है कि अगर आपके भाग्य में राधेश्याम देखना होगा, तो वह आप देखेंगे ही। चाहे फिल्म कितनी भी झेलनीय क्यों न लगे।
अमेरिका दशकों से हथियारों का सबसे बड़ा कारोबारी है। वह समय समय पर शांति के नाम पर अपने हथियारों को शोकेस करता रहता है। कम्बोडिया, वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान आदि में वह अपने हथियारों की बिक्री और लाइव डेमो करता रहा है। स्टॉकहोम पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार 2014-18 में प्रमुख हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरण की मात्रा 2009-13 की तुलना में 7.8 प्रतिशत अधिक और 2004-2008 की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक थी।
दीपिका नारायण भारद्वाज इकलौती महिला हैं, जो दहेज और बलात्कार के झूठे मामलों में फंसाये जाने वाले पुरुषों की तरफ से न्याय की बात करती है। इस बारे में बनाई गई इनकी फिल्में भी चर्चित रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दीपिका नारायण भारद्वाज से खास बातचीत।
मराठी में 'सैराट' जैसी जबरदस्त फिल्म बनाने वाले नागराज पोपटराव मंजुले निर्देशित फिल्म 'झुंड' देखने लायक है।अमिताभ बच्चन इसमें मुख्य भूमिका में है, लेकिन झोपड़पट्टी के बच्चों ने जिस तरह की एक्टिंग अमिताभ बच्चन के सामने की है, वह लाजवाब है! हालांकि फिल्म की कामयाबी की क्रेडिट अमिताभ बच्चन और डायरेक्टर नागराज मंजुले ले जाएंगे!
मशहूर आर्टिस्ट वाजिद खान से. वाजिद खान ने कला में अनेक प्रयोग किए हैं और कागज या केनवास के बजाय अपनी कला के लिए बड़े परिदृश्य चुने हैं। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, लिम्बा बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स जैसी किताबों में उनके 37 रिकॉर्ड दर्ज हैं। 8 पेटेंट भी उनके नाम पर हैं।जिन चीजों को लोग कलात्मक नहीं मानते, वे उनका इस्तेमाल भी पेंट और ब्रश की तरह करते हैं, चाहे वे कीले हो या चम्मच और कांटे, कटोरियां हो या प्लेट। अस्पताल में काम आने वाले सर्जिकल उपकरण हो या स्टेथोस्कोप।
रूस और यूक्रेन के बीच जंग और भारत के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के कारण एनएसई घोटाले की चर्चा डाब गई है, लेकिन यह घोटाला है किसी फ़िल्मी कहानी या ओटीटी की किसी सनसनीखेज सीरीज की तरह की। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) दुनिया का 10वां सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज हैं। इसका फिफ्टी सूचकांक भारत के ही नहीं, पूरी दुनिया के निवेशकों के लिए बहुत मायने रखता है। एनएसई में शामिल स्टॉक्स की कुल कीमत भारत के जीडीपी से भी ज्यादा है। अंदाज लगा सकते है कि एनएसई कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। एनएसई ऑप्शन और फ्यूचर सहित कई तरह की सिक्योरिटी खरीदने और बेचने की सुविधा देता है। शेयर की खरीद-फरोख्त का असल खेल इसी एनएसई में होता है।
भोपाल के माधवलाल सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय और शोध संस्थान के संस्थापक विजयदत्त श्रीधर ने सुदीर्घ काल तक पत्रकारिता की है। वे आजीवन पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं - पत्रकार और मीडिया शिक्षक के रूप में। उन्होंने मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ की स्थापना की। भारतीय पत्रकारिता कोष के दो खंडों में गहन शोध प्रकाशित है। 41 वर्षों से वे आंचलिक पत्रकार नामक पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं।
विविध कलाओं के प्रति जीवन समर्पित करने वाले सरकार दंपत्ति कलाकृति फाउंडेशन के संस्थापक हैं. देश-दुनिया में उनके शताधिक शो हो चुके हैं। अनेक युवा कलाकारों को उन्होंने प्रशिक्षित किया है और यह कारवाँ जारी है.
संजय लीला भंसाली ने मुंबई के कमाठीपुरा के पिंजरों को जिस तरह से आलीशान हवेलियों की तरह प्रस्तुत किया है और एक गुमनाम सी कोठे वाली को महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली अद्भुत महिला के रूप में बताने की कोशिश की है, वह अविश्वसनीय और हास्यास्पद लगती है। इस फिल्म में अगर कोई हीरो है, तो वह संजय लीला भंसाली का निर्देशन ही है। आलिया भट्ट ने शानदार अभिनय किया है और पल-पल चेहरे के भावों को बदलकर उसने बता दिया है कि वह अभिनय में किसी से कम नहीं है और अपने अकेले के बूते पर पूरी फिल्म को खींच ले जाने का मादा रखती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सीएए आंदोलन के दौरान जिन लोगों पर जुर्माना लगाया गया था और जिन लोगों ने जुर्माने की राशि जमा कर दी थी, उन्हें वह राशि रिफंड कर दी जाए। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि हमने जुर्माने की भरपाई करने के आदेश वापस ले लिए है। 2019 में सीएए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को लेकर उत्तरप्रदेश सरकार ने 274 लोगों को नोटिस दिए थे और कहा था कि वे जुर्माने की राशि जमा करें। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार के रवैये के प्रति नाराजगी जताई थी और जुर्माने के रिफंड में सरकार की सुस्ती को लेकर भी कड़ी टिप्पणी की थी।
रूस और यूक्रेन में तनातनी का भारत पर क्या असर पड़ रहा है? सरल शब्दों में समझिए - क्या है यह विवाद और क्या है इसकी जड़? क्या है नाटो और क्या करता है यह? अमेरिका पूरी तरह यूक्रेन के साथ है और चीन रूस के साथ जा सकता है तो भारत किसके साथ रहेगा?
ईडी के पूर्व डायरेक्टर राजेश्वर सिंह ने गत 31 जनवरी को ही अपने पद से इस्तीफा दिया था। उनका इस्तीफा उसी दिन मंजूर कर लिया गया। राजेश्वर सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने लखनऊ के सरोजनी नगर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। राजेश्वर सिंह ने कई मामलों की जांच की थी जिसमें 2G घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, एयरसेल मैक्सिस घोटाला आईएनएक्स मीडिया घोटाला आदि कई मामले शामिल रहे हैं। इन मामलों में कांग्रेस के कई नेताओं को फंसाया गया और कई मामलों में अभी तक किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया। राजेश्वर सिंह की टीम लगातार ऐसे घोटालों की जांच करती रही, जिस पर यूपीए को कटघरे में खड़ा किया जा सके। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में कोई तथ्य सामने नहीं आया। यही हाल कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले का है और कोयला खदान घोटाले का भी यही हाल है। कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के लिए ईडी के अधिकारी के रूप में बीआरएस लेना वैसा ही है, जैसा कि किसी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी से इस्तीफा देकर मूल कंपनी में जिम्मेदारी संभाल लेना। सीएजी के प्रमुख रहे विनोद राय को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने बड़े पद तोहफे में दिए। राजेश्वर सिंह भी उन्हीं के कदमों पर चल रहे हैं।
छिगन के साथ साथ मेरी भी बदरीविसाल की यात्रा सम्पन्न हुई। सड़क मार्ग से।
इंदौर से शुरू हुए और शिप्रा, देवास, शाजापुर, सारंगपुर, आगरा होकर हरिद्वार पहुंच गए। वहां से लक्ष्मण झूला, देवप्रयाग, शिव मंदिर, रघुनाथ मंदिर, भागीरथी और दुरंगी गंगा के दर्शन किये। भूत-चुड़ैल की बात की। पीर बाबा के थान के बगल से निकले। प्रकटेश्वर मंदिर गए और पंचानन महादेव, बारकोड, भद्रकाली मंदिर, बंदरपूंछ ट्रेकिंग स्पॉट, जानकी चट्टी, यमुनोत्री, बड़कोट, बद्रीनाथ, श्याम चट्टी, भीम पुल, गणेश गुफा !
साथ में थे जिया, पुरू, मेमसाब राखी और मोटे से कद्दू जैसे बदबूदार झगड़ालू सेठ!
इस बार भारत में बजट के बाद महंगाई तेजी से बढ़ेगी, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता। महंगाई बढ़ेगी मार्च के महीने से। आगामी 7 मार्च को पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव के अंतिम चरण का मतदान हो जायेगा और फिर पेट्रोल तथा डीज़ल की कीमतों में आग लगना शुरू होगी। कच्चे तेल की कीमतें अभी उच्चतम शिखर पर हैं और रूस तथा यूक्रेन के बीच संबंधों को लेकर उसमें और भी तेजी हो सकती है।
मुझे इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि आखिर आईपीएस एसोसिएशन ने 'पुष्पा : द राइज़' फिल्म के खिलाफ कोई मोर्चा क्यों नहीं संभाला? फिल्म में जिस तरह से एक आईपीएस अधिकारी (एसपी) का चरित्र दिखाया गया है वह बेहद शर्मनाक है। पुष्पा में ईमानदार डीएसपी का नाम गोविन्दप्पा है, जो दक्षिण भारतीय है, लेकिन भ्रष्ट एसपी का नाम भंवर सिंह शेखावत है और वह बोलता हरयाणवी है। पूरी फिल्म के तमाम कैरेक्टर दक्षिण भारत के हैं, एसपी को छोड़कर जो कि राजस्थान से आया हुआ लगता है। उसका नाम है भंवर सिंह शेखावत। एसपी के दफ्तर में फिल्म का हीरो (जो कि लाल चंदन का तस्कर है) एक करोड़ रुपए का बैग लेकर जाता है। एसपी अपनी टेबल के तमाम चीज़ें हटाकर नोटों की गड्डियां गिनने लगता है और जिस तरह की बातें वह हीरो से करता है, उससे साफ है कि उसे इतने पैसे में संतुष्ट नहीं है। शायद ही किसी ने इस तरह के एसपी को कहीं नियुक्ति पाते हुए देखा होगा!
संभवतः 5 जनवरी को या उसके बाद भारत के पांच प्रमुख राज्यों के विधानसभा के चुनाव घोषित हो जाएंगे यह राज्य हैं उत्तर प्रदेश पंजाब उत्तरांचल गोवा और मणिपुर। 2022 के आखिरी दिनों में हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के चुनाव का समय भी आ जाएगा चुनाव आयोग इन सब राज्यों में चुनाव के लिए तैयारी कर रहा है। मार्च-अप्रैल में सीबीएसई सहित सभी इन सभी राज्य में शिक्षा बोर्ड की दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं संपन्न करा ली जाएंगी। चुनाव आयोग मार्च के पहले हफ्ते तक इन राज्यों में विधानसभा चुनाव खत्म करने की तैयारी कर रहा है। इन पांचों राज्यों में मतदाता सूचियों के प्रकाशन को का निर्देश भी दे दिया गया है।
- IIMC की प्रवेश परीक्षा की जिम्मेदारी हमने 2 साल से नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को दे रखी थी। कोरोना के कारण परीक्षा हम नहीं ले पाए। न ही इंटरव्यू किए गए।
- हमारे संस्थान में पत्रकारिता के 80 फ़ीसदी विद्यार्थियों को प्लेसमेंट मिल चुका है, विज्ञापन और पीआर के विद्यार्थियों का प्लेसमेंट 100फ़ीसदी हुआ है। अब हमारा पूरा ध्यान प्लेसमेंट को लेकर भी है।
बिना शोरगुल और शोशेबाजी वाला सोशल मीडिया का बिरला शो डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी लाइव डिबेट
ममता यादव।
वे पत्रकारिता की दुनिया के एक चर्चित नाम हैं, पत्रकारिता की तीनों विधाओं में उन्हें महारत हासिल है, पत्रकारिता के सफर को तय करते उन्हें चार दशक से ज्यादा का समय हो गया है। पत्रकारीय सक्रियता और ऊर्जा के मामले में आज के युवा पत्रकार भी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते।
मुंबई के बांद्रा पूर्व स्थित कला नगर के एक चौराहे का नामकरण हाल ही में डॉ. धर्मवीर भारती के नाम पर किया गया। डॉ. धर्मवीर भारती कला नगर की ही साहित्य सहवास बिल्डिंग में रहते थे। कला नगर में ही बाल ठाकरे का निवास मातोश्री भी है, लेकिन चौराहे का नामकरण डॉ. भारती के नाम पर होना उनके प्रति मुंबई का सम्मान दर्शाता है। डॉ. धर्मवीर भारती भारतीय पत्रकारिता के शिखर पुरूषों में से हैं। इससे बढकर वे साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने 'धर्मयुग' जैसी सांस्कृतिक पत्रिका को स्थापित किया और ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक शीर्ष पर बनाए रखा। मुझे याद है 1981-82 के वे साल, जब विज्ञापन दाता धर्मयुग में विज्ञापन बुक करने के लिए लम्बी लाइन में लगते थे। हाल यह था कि दीपावली विशेषांक में तो साल भर पहले ही विज्ञापन बुक हो जाते थे।
चार बुड्ढे हैं, जिनका ताल्लुक कोर्ट से रहा है, शिमला की बर्फीली वादियों के सुनसान इलाके में विलासितापूर्ण तरीके से रहते हैं। ये बुड्ढे न्याय करने के लिए अपने घर में कोर्ट लगाने का खेल खेलते हैं। कोर्ट लगती है। एक खेल के बहाने बर्फीली वादी में फंसे हुए किसी मेहमान पर वे मुकदमा चलाते हैं। कहानी के अनुसार कोई व्यक्ति अगर अपराध करता है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए। वह अपराधी कानून से भले ही बच निकला हो, पर उन लोगों की नकली कोर्ट में असली सजा मिलनी ही चाहिए।
(डिस्क्लेमर : कोरोना के कारण बेल बॉटम फिल्म महाराष्ट्र में रिलीज नहीं हो पाई, लेकिन भारत के करीब 1850 स्क्रीन पर वह प्रदर्शित हुई है। यूएसए, कनाडा, यूके, सिंगापुर, केन्या, बेल्जियम और फिजी में भी इसका प्रदर्शन हुआ है। फिल्म के निर्माताओं ने प्रचार के लिए मुंबई के कुछ फिल्म-पत्रकारों को इकट्ठा किया और चार्टर्ड प्लेन से उन्हें सूरत ले गए। सूरत के आईनॉक्स मल्टीप्लेक्स में पत्रकारों को फिल्म दिखाई गई, तोहफ़े दिए गए और उन्हें वापस चार्टर्ड प्लेन से मुंबई छोड़ा गया. यह सब इसलिए कि वे फिल्म की बहुत अच्छी समीक्षा करें। तो भाइयो और बहनो, मुंबई वालों की फिल्म समीक्षा अच्छी लगी हो तो सोच लेना।)
दंगल, थर्ड डिग्री, हल्ला बोल, टक्कर, ताल ठोक के...! ये कोई टीवी डिबेट के नाम हैं? क्या दंगल के नाम पर कोई डिबेट हो सकती है? दंगल होगा तो वहां शक्ति प्रदर्शन ही होगा, विचारों का प्रदर्शन नहीं होगा। चैनलों के अधिकांश न्यूज़ एंकर बातचीत में आपा खो देते हैं या आपा खोने का नाटक करते हैं। वे चीख चीख कर कोई भी बात बार-बार कहते हैं और अपनी बात को ही देश की बात मानने लगते हैं। वे खुद ही भारत हैं और खुद ही मसीहा। ये एंकर्स ऐसे चिल्लाते हैं मानो सारे पैनलिस्ट बहरे हों।
साल 1942 की अगस्त क्रांति के वक़्त दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था, कॉंग्रेस ने आज़ादी का बिगुल बजाया। भारत आज़ाद हुआ। अब कोरोना के ख़िलाफ़ विश्व में युद्ध चल रहा है। भारत आज़ाद है, लेकिन सरकार का लक्ष्य आगामी चुनाव के पहले राम मंदिर निर्माण है, इसलिए तारीख चुनी गई 5 अगस्त 2020 । भाजपा और प्रधानमंत्री को यह तारीख बहुत पसंद है क्योंकि यह उनके लिए ऐतिहासिक तारीख है।
सेनेटाइजर और मॉस्क वितरण के साथ शुरु हुई नेशनल ब्लॉगर्स समिट-2020’
डॉ भीमराव अंबेडकर सिर्फ संविधान निर्माता या दलित नेता ही नहीं थे बल्कि वे महात्मा गांधी के समकक्ष थे।गांधी ने यदि एक धोती लपेट कर देश के आमजन को एकजुट किया तो डॉ आंबेडकर ने छोटे लोगों में आत्म विश्वास जगाने के लिए टाई-कोट पहनना नहीं छोड़ा। वे कृषि को उद्योग का दर्जा देने के पक्ष में थे। ब्रिटिश हुकूमत भी अर्थव्यवस्था सुधार के मामले में उनसे सलाह लेती थी।
डॉ अंबेडकर के व्यक्तित्व के बहुमुखी पहलुओं पर देश भर से जुटे ब्लॉगर्स ने ‘नेशनल ब्लॉगर्स समिट-2020’ के उद्घाटन सत्र में चर्चा की।पहले यह समिट अंबेडकर विवि महू में होना थी लेकिन कोरोना वाइरस को लेकर बरती जा रही सतर्कता के चलते उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एडवायजरी जारी करने पर इंदौर प्रेस क्लब के सहयोग से आयोजित की गई।दूसरे सत्र में ब्लॉगर्स ने ब्लॉग लेखन से जुड़ी विभिन्न विधाओं पर चर्चा के साथ अपने अनुभव भी शेयर किए।मंगलवार को इस समिट का समापन सत्र होगा।
भारत का नाम एक ही होना चाहिए- भारत। चाहे अंग्रेज़ी में लिखो-बोलो चाहे हिन्दी में। जैसे जापान का पुराना नाम निप्पो था, उसे जापान कर दिया गया। डच ईस्ट इंडीज़ का नाम इंडोनेशिया कर दिया गया।स्याम का नाम थाईलैंड हो गया, संयुक्त अरब गणराज्य का नाम इजिप्ट , पर्शिया का नाम ईरान, न्यासालैंड का मलावी, अबीसीनिया का नाम इथियोपिया , डच गुयाना का सुरीनाम , गोल्ड कोस्ट का घाना, दक्षिण पश्चिमी अफ़्रीका का नामीबिया, आइवरी कोस्ट को कोट डी आइवरी, कांगो का जायरे, फारसोमा का ताईवान, हॉलैंड का नीदरलैंड, मलाया का मलेशिया और हमारे पड़ोस का बर्मा म्यांमार तथा सीलोन का नाम श्रीलंका कर दिया गया है। जब पूरी दुनिया के देशों के नाम बदल सकते हैं तो भारत का भी बदल सकता है। भारत को भारत कहने में क्या संकोच करना ?
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जन्मस्थली महू में स्थित डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के आर्थिक चिंतन पर केन्द्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय ब्लॉगर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन ब्लॉगर्स अलायंस और विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में होगा। ब्लॉगर्स अलायंस मप्र / छग के अध्यक्ष डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने पत्रकार वार्ता में जानकारी दी है कि यह देश में अपने तरह का पहला आयोजन है, जिसमें देशभर के 100 से अधिक जाने-माने ब्लॉगर, पत्रकार, लेखक, फिल्मकार और कलाकार भाग ले रहे हैं। प्रकाश हिन्दुस्तानी ने इस आयोजन में सहयोग की अपील की है।
एक क़िताब, जिसे पढ़कर बुश ने 15 साल पहले वायरस के खतरे से बचने के लिए तैयारी कर ली थी। साथ ही 7100 करोड़ डॉलर का बजट रखा था।द ग्रेट इन्फ्लुएंजा: द एपिक स्टोरी ऑफ द डेडली प्लेग इन हिस्ट्री' किताब को 2004 में जॉन एम बैरी ने लिखा था। यह एक नॉनफिक्शन किताब है, जो 1918 के स्पेनिश फ्लू महामारी के बारे में है। इसे अमेरिकी इतिहास की पृष्ठभूमि और चिकित्सा के इतिहास की किताब भी कहा जा सकता है। (किताब ऑनलाइन उपलब्ध है और इसके लेखक अमेरिका में रहते है। उनकी वेबसाइट है : http://www.johnmbarry.com/ )
भारत के फार्मा सेक्टर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अहसानमंद होना चाहिए कि उन्होंने दुनिया की निगाहों में भारतीय फार्मा सेक्टर की महत्ता बार-बार बताई। यह काम करोड़ों डॉलर के खर्च के बाद भी संभव नहीं हो पाता। भारत विश्व में हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत तकरीबन 400 करोड़ की हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का निर्यात भी करता है। भारत में मुख्यतः इसे इप्का और कैडिला लैब बनाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार की रात ट्विटर पोस्ट में लिखा- ''रविवार को फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यू-ट्यूब को अलविदा की सोची। इस बारे में अवगत कराता रहूँगा।'' उन्होंने यह नहीं लिखा था की मैं सोशल मीडिया के ये प्लेटफार्म छोड़ रहा हूँ या छोड़ने वाला हूँ। घंटेभर के भीतर ही इस एक ट्वीट पर 50,000+ लोगों ने कमेंट किये, 25,200+ ने रिट्वीट किया, 76,400 ने लाइक्स किया। मैंने देखा कि सोमवार रात तक ट्विटर पर मोदी के 5 करोड़ 33 लाख फ़ॉलोअर्स हैं। उनका फेसबुक पेज चेक किया तो पाया कि उन्हें 4 करोड़ 47 लाख से ज़्यादा लोग फॉलो करते हैं। इंस्टाग्राम पर 3 करोड़ 52 लाख प्लस फ़ॉलोअर्स हैं और यूट्यूब पर सब्सक्राइबर्स की संख्या 4 करोड़ 51 लाख से अधिक है I उनके नाम पर दर्ज़नों फर्जी अकाउंट भी हैं। सोशल मीडिया से दूरी बनाने के नरेंद्र मोदी के ट्वीट के बाद ट्विटर पर नो सर हैशटैग चल निकला। मोदी के प्रमुख विरोधी माने जाने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सलाह दी कि मोदी सोशल मीडिया से दूरी न बनाएं।
गली ब्वॉय ने ठीक ही गाया था - 'क्या घंटा लेकर जायेगा?' फिल्मफेयर ने गली ब्वॉय की मान ली। वही मिला मनोज मुन्तशिर को।
फिल्म : केसरी 1897 में 'ब्रिटिश भारतीय सेना' की 36वीं सिख रेजीमेंट के 21 बहा
दुर सैनिकों की लड़ाई की कहानी है जो उन्होंने सारागढ़ी में करीब दस हज़ार हमलावरों से लड़ी थी। इसे सारागढ़ी की लड़ाई भी कहते हैं। सेना दे 21 बहादुर जवानों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह ने मृत्युपर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे बड़े अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है।
संदर्भ : जवाहरलाल नेहरू की वसीयत का अंश - "मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठी भर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समुंदर में जा मिले। लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दिया जाए। वह खेत जहां हज़ारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर हिस्सा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए."
गीत : अब आप जरा जवाहरलाल नेहरू की वसीयत और केसरी फिल्म के गाने के बोल की तुलना करें। खास बात यह है कि इस गाने में वतन को भारत माता नहीं कहा गया है, बल्कि वतन की तुलना महबूब से की गई है। जब भी मैं यह गाना सुनता हूँ तो रोमांचित हो उठता हूँ।
अगर आप 1990 और 2020 के दो प्रेमी जोड़ों की टेंशन अपने सिर में डाउनलोड करना चाहते हैं, तो वेलेंटाइन्स डे पर यह कर सकते हैं। यह फिल्म ऐसे युवक-युवती की कहानी है, जो युवावस्था में केवल मस्ती और संभावनाओं को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। जो लोग यह मानते हैं कि प्यार दिल से करना चाहिए, लेकिन शादी दिमाग के अनुसार। जिंदगी में पैसा कमाना बहुत जरूरी है और वास्तव में ज्यादा पास आना, असल में दूर जाना होता है। यह पीढ़ी समझती है कि प्यार में सीरियस होना कोई अच्छी बात नहीं है। इस तरह दो पीढ़ियों के दो युगल की कहानी एक साथ चलती रहती है। एक फ्लैशबैक में है और दूसरी रियल टाइम में। वेलेंटाइन्स डे के अवसर को भुनाने में जुटे बाजार की भीड़ में इम्तियाज अली की यह फिल्म भी शामिल हो गई।
फिल्म मलंग फिल्म प्रमाणन बोर्ड के नए डिजाइन के प्रमाण पत्र के साथ शुरू होती है, जिसमें अक्षय कुमार और नंदू के सेनेटरी पैड के विज्ञापन के बाद कबीर की दो लाइन स्क्रीन पर आती है - ‘नींद निशानी मौत की, जाग कबीरा जाग और रसायन छांड़िके, नाम रसायन लाग।’ मलंग फिल्म बनाने वाले ने मलंग का अर्थ समझ लिया है टोटल गैरजिम्मेदार आदमी, जो केवल अपनी मस्ती के लिए ही जीता है। न वह अपना सोचता है, न परिवार का, न समाज का और देश या इंसानियत के बारे में तो सोचने की कोई बात ही नहीं।
फेसबुक 16 साल का हो गया। उसके संस्थापक मार्क जकरबर्ग कहते हैं कि सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ है। जकरबर्ग का दावा सही है या गलत यह तो अभी भी विवादों में ही है, लेकिन यह तय है कि फेसबुक अब सोशल मीडिया का प्लेटफार्म भर नहीं रह गया है, बल्कि इससे अधिक एक ऐसी दैत्याकार कार्पोरेट शक्ति बन गया है, जो कई सरकारों की भी नहीं सुनता। सोशल मीडिया का उपयोग देशों की सीमाओं के बाहर धूर्त राजनेता अपने-अपने हिसाब से करते आ रहे है।
पंगा फिल्म का नाम वापसी या कमबैक होना चाहिए था। कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ी शादी और एक बच्चे को जन्म देने के 7 साल बाद वापस कबड्डी की राष्ट्रीय टीम में आने के लिए संघर्ष करती हैं। पति साथ है, बेटा साथ है, मां साथ है, दोस्त साथ है। ऑफिस के लोग भी कमोबेश साथ है, तो इसमें पंगा लेने की क्या बात है। पति और बेटे को भोपाल में छोड़कर मुंबई और कोलकाता में कबड्डी खेलने जाना कोई पहाड़ तोड़ना नहीं है। अब अगर कोई ऐसे में घर में सहायक की नियुक्ति न करें, मां की मदद न लें और रोना रोते रहे कि मैं एक मां हूं और मां के कोई सपने नहीं होते, तो यह मूडता है। वैसी ही मूडता जैसी फिल्म में नायिका और उसका परिवार कार होते हुए भी स्कूटर पर बैठकर शॉपिंग करने जाता है। शादी और बच्चा होने के बाद नेशनल टीम में भले ही न खेलें, लेकिन खुद को फिट रखने से कौन किसी को रोकता है। कहानी में यही सब झोल है। वरना फिल्म में अच्छी एक्टिंग है और पारिवारिक कहानी है।
में शायरी का चलन बहुत लोकप्रिय है। यह उर्दू कविता का एक रूप है। भारत और पाकिस्तान में हज़ारों लोकप्रिय शायर हुए हैं। ग़ज़ल अरबी साहित्य की विधा थी, लेकिन उसे फारसी, उर्दू, हिन्दी और नेपाली ने भी अपना लिया। ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है।
ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं और अंतिम शेर को मक़्ता। ग़ज़ल जिस धुन या तर्ज़ पर होती है उसे बहर कहा जाता है और आखिरी शेर मक़्ता कहलाता है। शेर के बहुवचन को अशआर कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम जोड़ देता है ग़ज़ल में शेर एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।
मध्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बातें तो कई बार हुई है, लेकिन वह सारी कवायद ब्यूरोक्रेसी में ही उलझ कर रह गई है। इसी बीच उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर यानी नोएडा में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के लिए फैसला कर लिया।
देश में अभी 15 राज्यों के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। उत्तरप्रदेश में करीब 50 वर्षों से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर चर्चा चल रही थी। सरकार का तर्क है कि इसे लागू करने से लखनऊ और नोएडा की कानून और व्यवस्था की स्थिति अच्छी होगी। अपराधियों पर नियंत्रण करना आसान होगा और फैसलों में तेजी आएगी। वास्तव में पुलिस कमिश्नर प्रणाली अंग्रेजों के ज़माने की देन है। आजादी के बाद भी मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में यही प्रणाली लागू थी।
मध्यप्रदेश में तो सरकार ने छपाक को टैक्स फ्री भी कर दिया है। वास्तव में छपाक दर्शनीय फिल्म है। इसलिए नहीं कि यह एसिड अटैक पर आधारित है, बल्कि इसलिए की इसमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने की कोशिश करने वालों की जीत की कहानी है। फिल्म बताती है कि दुनिया में सबकुछ बुरा ही बुरा नहीं हो रहा है। न्याय व्यवस्था के प्रति यह फिल्म आस्था जगाती है कि देर से ही सही पर न्याय के लिए लड़ा जरूर जाना चाहिए। एसिड अटैक के बहाने इसमें समाज में महिलाओं के प्रति बदले की भावना, समाज के सकारात्मक सोच वाले लोगों की पहल और जातिगत हिंसा को भी छूने की कोशिश की गई है। कहानी के खलनायक की जाति से संबंधित दुष्प्रचार भी झूठा साबित होता है। किसी वर्ग की जाति या धर्म छुपाने की कोशिश नहीं की गई है।
आर्थिक जगत में डॉ. भीमराव आम्बेडकर के योगदान को हमेशा कमतर आंका गया है। डॉ. आम्बेडकर का कद इतना बड़ा था कि उसका आकलन छोटी बात नहीं है। आमतौर पर जन-जन में उनकी छवि संविधान निर्माता और युगांतरकारी नेता के रूप में ही प्रमुखता से रही है। अर्थ जगत में डॉ. आम्बेडकर के योगदान की चर्चा कम ही होती है। डॉ. आम्बेडकर ने विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, शिक्षाविद, चिंतक, धर्मशास्त्री, पत्रकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि अनेक रूपों में अहम योगदान दिया है। आज़ादी के बाद अगर उन्हें समय मिलता तो निश्चित ही अर्थशास्त्री के रूप में उनकी सेवाओं का लाभ दुनिया ले पाती। भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना में डॉ. आम्बेडकर का योगदान अहम है।
फिल्म गुड न्यूज ऐसे वयस्कों के लिए है, जिन्होंने विकी डोनर और बधाई हो जैसी फिल्में पसंद की है। यह विकी डोनर से आगे की कहानी है, जिसमें कॉमेडी और इमोशन का कॉकटेल है। भारत में गुड न्यूज का अर्थ एक ही बात से लिया जाता है और वहीं इस कहानी के केन्द्र में है। कॉमेडी से शुरू हुई फिल्म धीरे-धीरे ऐसे गंभीर और भावनात्मक मोड पर पहुंच जाती है, जब दर्शक भावुक हो जाते है। आज से 20 साल पहले हिन्दी में इस तरह की फिल्मों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
दबंग-3 सलमान खान की फॉर्मूला फिल्म है, जिसमें सलमान खान, सलमान खान कम और रजनीकांत ज्यादा नजर आए। एक्शन और फाइट के सीन दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरह है। यह दबंग की फ्रेंचाइजी है, तो जाहिर है कि सलमान खान टाइप फिल्म ही होगी और वैसी है भी। या तो यह फिल्म आपको बेहद पकाऊ लगेगी या बेहद मनोरंजक। आपके बुद्धि के स्तर की परीक्षा लेती है यह फिल्म। फिल्म का एक संवाद है कि भलाई और बुराई की लड़ाई में बुराई हमेशा जीत जाती है, क्योंकि भलाई के पास इतना कमीनापन नहीं होता कि वह लड़ सकें। सलमान और सोनाक्षी के अलावा इसमें महेश मांजरेकर की बेटी सई मांजरेकर की भी बड़ी भूमिका है। दबंग-3 में भी चुलबुल पांडे उर्फ रॉबिनहुड पांडे उर्फ करू के रोल में सलमान खान और फिलर के रूप में सोनाक्षी सिन्हा के घीसे-पीटे संवाद है। इसका फॉर्मूला थोड़ा बदला गया है और कहानी में थोड़ा टि्वस्ट भी है। मुन्नी बदनाम की जगह, मुन्ना बदनाम हुआ, नैना वाले गाने, आइटम और फाइटिंग के दृश्य है।
डिस्क्लैमर : किसी साहसी महिला को मर्दानी कहना उसकी प्रशंसा नहीं, एक लिंगभेदी टिप्पणी है। उसे प्रशंसा के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। इंदिरा गांधी के बारे में किसी ने कहा था कि उस दौर की राजनीति में वे इकलौती मर्द थीं। वास्तव में उन्हें लौह महिला या आयरन लेडी कहना उचित होता।
मर्दानी-2 फिल्म 2014 में आई मर्दानी की अगली कड़ी है। यह एक जांबाज आईपीएस अधिकारी की कहानी है, जो कोटा में एसपी हैं और उसे एक साइको किलर ने चुनौती दे रखी है कि अगर दम है, तो मुझे पकड़कर दिखा। इस फिल्म में पुलिस अधिकारी बनी रानी मुखर्जी का साबका एक ऐसे अपराधी से होता है, जो महिलाओं के प्रति क्रूरतम अपराध करता है और इसके साथ ही पुलिस को चुनौती देता जाता है।
करीब 259 साल पहले 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठा योद्धाओं और अफगानिस्तान की सेना के बीच हुई तीसरी बड़ी लड़ाई को आशुतोष गोवारीकर ने अपने अंदाज में फिल्माया है। इतिहास के इस बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर को फिल्माने के लिए निर्देशक ने रचनात्मक स्वतंत्रता खुद ही ले ली है। पानीपत में संजय दत्त ने अहमद शाह अब्दाली - दुर्रानी (1722 से 1772) का चित्रण किया है। उसे अफगानिस्तान में हीरो की तरह माना जाता है। भारत में अब्दाली को आने से रोकने के लिए पुणे से पेशवा राजा ने अपनी सेना भेजी थी, ताकि अफगानिस्तान की फौजें भारत में कब्जा न कर पाएं। लगान, स्वदेश, जोधा-अकबर आदि फिल्में बनाने वाले गोवारीकर ने फिल्म के ऐतिहासिक संदर्भों को दिखाने के साथ-साथ भारत में राजाओं के आपसी विवादों को भी दिखाने की कोशिश की है। संजय दत्त ने जिस अहमद खान अब्दाली का रोल किया है, उसे 25 साल की उम्र में ही सर्वसम्मति से अफगानिस्तान का राजा चुना गया था। अब्दाली को वहां के लोग विनम्रता और बहादुरी के लिए पहचानते है। उसे दुर-ए-दुर्रान का खिताब दिया गया था, जिस कारण उसका नाम दुर्रानी भी पड़ा।
लगता है कि राजनीति में खासकर चुनावी राजनीति में अब विचारधारा हाशिये पर चली गई है, जो लोग कभी सहयोगी होते थे, अब विरोधी हो जाते हैं, जो कभी विरोधी थे, सहयोगी होने लगे। महाराष्ट्र में जिस तरह कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की मदद से शिवसेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने हैं, वहां शिवसेना कभी कांग्रेस की सबसे बड़ी विरोधी हुआ करती थी। शिवसेना करीब तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी के रूप में चुनाव लड़ रही थी, लेकिन अब उसके नेता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। महाराष्ट्र की सियासत चल ही रही थी कि एक ऐसा ही अजूबा गोवा में देखने को मिला। गोवा के मारगो में महापौर के लिए तीन पार्टियां मैदान में थी। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी, भाजपा और कांग्रेस। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी एनडीए में है और भाजपा की सहयोगी पार्टी है, लेकिन मार्गो के महापौर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मिलकर अपने संयुक्त उम्मीदवार डोरिस टेक्सेरिया का समर्थन किया। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के उम्मीदवार पूना नायक थे। मारगो नगर निगम में भाजपा की 7 सीटें हैं और कांग्रेस की 6, जबकि गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के 11 सदस्य जीते हैं। 25 सदस्यीय परिषद में गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के उम्मीदवार की जीत हुई। गत 22 नवंबर को यह अजूबा हुआ, जब महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल अपने शीर्ष पर थी।
फिल्म होटल मुंबई इसलिए देखनीय है कि इसमें 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुई आतंकवादी हमले का एक हिस्सा बेहद यथार्थ रूप में दिखाया गया है। यह पूरी फिल्म बंबई पर हुए हमले के बजाय ताज होटल पर हुए हमले और वहां के बचाव कार्यक्रम पर केन्द्रित है। फिल्म का हर दृश्य दहशत से भरा हुआ है और दर्शक चौकन्ना होकर सीट पर चिपका रहता है। आतंकियों के मनोविज्ञान और ताज होटल में बंधक बने करीब 1700 अतिथियों और कर्मचारियों की आपबीती का अंदाज इस फिल्म को देखकर होता है। यह भी समझ में आता है कि टीवी मीडिया ने किस तरह आतंकवादियों और उनके सरगनाओं की मदद की, क्योंकि टीवी पर लाइव कवरेज देखते हुए आतंकियों का सरगना दिशा-निर्देश देता रहा।
पागलपंती फिल्म देखना वैसे ही है जैसे कि किसी बेवकूफी का ऐप डाउनलोड करना। मल्टी स्टारर पागलपंती के निर्देशक इसके पहले नो एंट्री, वेलकम, सिंग इज किंग, भूल भुलैइया, रेडी, मुबारका जैसी फिल्में बना चुके हैं, लेकिन पागलपंती में पागलपंती थोड़ी ज्यादा ही हो गई है। जॉन अब्राहम, अनिल कपूर, अरशद वारसी, पुल्कित सम्राट, सौरभ शुक्ला, कृति खरबंदा, उर्वशा रौतेला, इलियाना डिक्रूज जैसे अनेक कलाकारों के होते हुए भी फिल्म अतिरेक की शिकार हो गई है। ओवरएक्टिंग और हंसाने की जबरदस्ती कोशिश मजा किरकिरा कर देती है। इस फिल्म की कहानी और निर्देशन है अनीज बज्मी का। फिल्म में मुकेश तिवारी और डॉली बिंद्रा के भी छोटे-छोटे रोल है, लेकिन कोई भी फिल्म को बहुत प्रभावित नहीं कर पाया।
केन्द्र सरकार जश्न के लिए हवेली की नीलामी करने जा रही है। भारत की नवरत्न कंपनियों में से एक भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का विनिवेश करने का फैसला कुछ इसी तरह का है। बीपीसीएल में भारत सरकार का 53.23 प्रतिशत हिस्सा है और सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी किसी और को सौंपने जा रही है। यह देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी है। विनिवेश के बाद सरकार का नियंत्रण इस कंपनी से हट जाएगा।
हे प्रभु, मुझे माफ़ कर, मैंने मरजाँवा फ़िल्म देख ली!
(तत्काल लिखने की हिम्मत नहीं हुई!)
मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था, लेकिन फिर भी मैं मरजाँवा फिल्म देखने के लिए चला गया। आप किसी भी कारण से यह फिल्म देखने का जोखिम मत उठाइए। महाबकवास है!
जो रोल अमिताभ बच्चन को मिलना चाहिए, वह अवतार गिल को मिल जाए, तो क्या होगा? अगर अमिताभ को दीवार और शोले की जगह अवतार में प्रमुख भूमिका निभानी होगी तो क्या होगा? यह हेयर लॉस नहीं आइडेंडिटी का ही लॉस हो जाएगा। पिछले हफ्ते ही फिल्म आई थी उजड़ा चमन और इस शुक्रवार को लगी है बाला। दोनों ही फिल्मों का विषय एक है। जवानी में गंजे होते युवाओं की समस्या। बाला ने उजड़ा चमन को बहुत पीछे छोड़ दिया है, क्योंकि इसमें कहानी और चरित्रों की प्रस्तुती इस तरह की गई है कि वह दिलचस्प और विचारोत्तेजक लगती है। उजड़ा चमन देखते हुए गिरते बालों की समस्या से परेशान व्यक्ति को खीज होने लगती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने जैसे पात्र का उपहाश बर्दाश्त नहीं कर सकता। बाला में इसी बात को संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। उजड़ा चमन में गंजे होते युवा और रश्त-पुश्त होती युवती की कहानी थी। इसमें एक सुंदर युवती और गंजे होते युवक के साथ ही एक श्याम वर्ण युवती की कहानी भी जोड़ दी गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन और जापान को सबक सिखा सकते हैं, लेकिन लश्कर-ए-नोएडा को नहीं। भारत में आरसीईपी यानी रीजनल कम्प्रेहेन्सिव इकॉनामिक पार्टनरशिप में शामिल होने से इनकार किया, वह तो देशहित में ही है, लेकिन फिर भी मीडिया का एक प्रमुख वर्ग जिसे लश्कर-ए-नोएडा कहा जाने लगा है, सरकार के फैसले के खिलाफ आग उगल रहा है। अब भी अगर यह स्थिति है, तो सोचिए कि समझौते में शामिल होने के बाद क्या स्थिति होती ? तब यही लश्कर-ए-नोएडा आरोप लगाता कि मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हितों को बेच दिया है और उसे देश के किसानों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों और उद्योगों की कोई चिंता नहीं है। अब यह वर्ग कहना लगा है कि समझौते से अलग हटने के कारण यह बात साफ हो गई है कि भारत की अर्थव्यवस्था कमज़ोर स्थिति में है। यह भी कहा जा रहा है कि अगर भारत इस समझौते में शामिल होता, तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य पाना आसान हो जाता है। इसका मतलब यह कि चित भी हमारी और पट भी हमारी।
दूसरे नरेन्द्र मोदी!
वास्तव में दो नरेन्द्र मोदी हैं। एक भाजपा के नेता हैं और दूसरे भारत के प्रधानमंत्री! आप भाजपा नेता से घोर असहमत हो सकते हैं। लेकिन शायद प्रधानमंत्री मोदी से नहीं। बैंकाक में आरसीईपी कई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी गए थे, वहां उन्होंने जो कहा भारत ने कहा, भारत की ओर से कहा और बेशक़ भारत के लिए कहा।
2012 से चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, सिंगापुर और आसियान के दस देशों सहित कुल 16 देश मुक्त कारोबार करनेवाले देशों का संगठन बनाना चाहते थे। मुक्त व्यापार यानी बेरोकटोक आयात और निर्यात! भारत भी उस चर्चा में शामिल होता था।
दिलों की बात करता है जमाना, लेकिन मोहब्बत अब भी चेहरे से ही शुरू होती है। चेहरे और शरीर की बनावट को लेकर बनी उजड़ा चमन फिल्म में सब कुछ साधारण है। अभिनय, निर्देशन, गीत-संगीत, छायांकन, सभी कुछ औसत दर्जे का। इस कारण फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में सफल नहीं हो पाई। दो घंटे की फिल्म भी लंबी लगने लगती है। कहां लिखा है कि गोरा होना अच्छा है और सांवला होना अच्छा नहीं। यह भी कहां लिखा है कि बाल वाले ज्यादा हैंडसम लगते है और गंजे हैंडसम नहीं लगते। यह भी कहीं नहीं लिखा कि अच्छा डीलडौल होना कोई बड़ी अयोग्यता है, लेकिन फिर भी समाज में ये सब चलता रहता है।
मीडिया पर सेलेब्रिटी का आतंक इतना ज्यादा हो गया है कि वह आम आदमी से दूर भाग रहा है!उसे एक तरह का फ़ोबिया हो गया है। आम आदमी की ख़बरें ग़ायब; राजनीति, कूटनीति, अर्थ जगत, जेंडर से जुड़े विषय, विषमताओं समाचार लुप्त; संस्कृति,शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े तमाम मुद्दों और विचारों का स्पेस अब केवल और केवल सेलेब्रिटी से भरा जा रहा है, वह भी उन सेलेब्रिटीज़ के बहाने, जिन्हें शायद ही कोई पूछता हो! हमारे दिमाग़ को कूड़ाघर समझ रखा है?
ताजमहल बहुत सुंदर है, हमने सुना है, उसे देखा नहीं। हवाई जहाज में बैठने में बहुत मजा आता है, हमने सुना है पर हम कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे। समंदर में बहुत ज्यादा पानी होता है, हमने सुना है पर हमने उसे देखा नहीं, लेकिन हमारे बच्चे यह सब देखेंगे। हमारी बेटियों के नाखूनों पर गोबर लगा है, लेकिन वहां भी कभी नेल पॉलिश लगेगी। यही मूल स्वर है सांड की आंख फिल्म का। जेंडर इक्वेलिटी पर बनी यह फिल्म अतिनाटकीय है। फिल्म मन को छूं जाती है और छोटी-मोटी कमियों को भुला दें, तो यह एक शानदार फिल्म है।
पत्रकार के रूप में मुंबई में करीब डेढ़ दशक बिताने के बाद महाराष्ट्र चुनाव के बारे में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि :
1. राज ठाकरे और मनसे का कोई भविष्य महाराष्ट्र में नहीं बचा है।
2. भाजपा की सीटें गत चुनाव से कम हुई हैं और शिव सेना की बढ़ी हैं इससे शिव सेना अब ज्यादा और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो के लिए दावा करेगी।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न दिलाने का मुद्दा घोषणा पत्र में लिखे जाने के बाद सावरकर पर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने दो-दो बार काला पानी की सजा पाई हो। दोनों बार यह सजा आजीवन मिली थी। न ही इतिहास में कोई ऐसा स्वाधीनता सेनानी दर्ज़ है, जिसके परिवार की संपत्ति अंग्रेज़ों ने 6-6 बार कुर्क की हो और न ही इतिहास में कोई ऐसा स्वाधीनता सेनानी दर्ज़ है, जिसमें एक ही परिवार के दो भाइयों को एक ही जेल में रखा गया हो और वे 12 साल तक एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देख पाए हों। जो बलिदानी भारत माता के लिए अंडमान की जेल में कोल्हू के बैल की तरह 10 साल तक जुटा रहा, जिसने जेल की दीवारों पर भारत माता की स्मृति में नाखून और पत्थर से कविताएं लिखी, जो बलिदानी अपने जीवन के महत्वपूर्ण 26 साल जेल में बिताने पर भी उद्वेलित नहीं हुआ, जिस क्रांतिकारी ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अंधविश्वासों के खिलाफ युद्ध किया। जिसने हमेशा साहित्य, भारतीयता और मातृभूमि की रक्षा को बल दिया, जिसने पढ़ाई करने के बाद भी बैरिस्टर की डिग्री इसलिए नहीं ली कि उन्हें इसके लिए ब्रिटेन की महारानी के नाम पर शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने थे और उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।
एक दौर था जब देश धर्म के आधार पर चला करते थे। फिर राजतंत्र आया। उसके बाद साम्यवाद, पूंजीवाद आदि की अवधारणाएं आई। यह माना जाने लगा कि सरकारें देश चलाती हैं। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में यह धारणा है कि सरकारें देश चलाती हैं, लेकिन वास्तव में बाज़ार की शक्तियां ही सरकार को संचालित करती हैं। वे ही देश की दिशा तय करती है और सरकारों को बाज़ार के हिसाब से चलना होता है। यूरोप के कई देशों में हम इसे देख चुके हैं और भारत तथा चीन जैसे देशों में भी इसका एहसास होता है। बात चाहे मीडिया की हो, शिक्षा व्यवस्था की, चिकित्सा व्यवस्था की या और किसी भी व्यवस्था की। बाज़ार के सामने सभी हाशिये पर हैं, जो लोग बाज़ार को गाली देते हैं, वे भी बाज़ार के इशारे पर ही चलते नज़र आते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। पूर्ववर्ती सरकारों में भी यही होता था। अब बाज़ार का प्रभाव पहले की अपेक्षा कही ज्यादा है।
जिंदगी में खुशियां ही सबकुछ नहीं होती। कभी पैसे खर्च करके भी रोने का मन करें, तो प्रियंका चोपड़ा की नई फिल्म हाजिर है। फिल्म देखकर लगा कि जायरा वसीम ने हिन्दी फिल्म दर्शकों पर बड़ा उपकार किया कि अभिनय की दुनिया त्याग दी। अगर आपके पास दिल्ली के पास छतरपुर में स्वीमिंग पुल वाला शानदार फॉर्म हाउस है, पैसे की कोई कमी नहीं है, घर नौकर-चाकरों से भरा पड़ा है, तनख्वाह पाने के लिए बॉस से डांट नहीं खानी पड़ती या कारोबार में कोई झिकझिक नहीं करनी पड़ती, भूतपूर्व मिस वर्ल्ड जैसी बीवी, दो बच्चे और एक कुत्ता आप अफोर्ड कर सकते है, तो आपको पूरा हक है कि इमोशनल हुआ जाए। अगर आपके पास यह सब नही और जबरन इमोशनल होना ही हो, टसुएं बहाने का मूड हो, तब प्रियंका चोपड़ा के नाम पर 200-500 रुपये स्वाहा किए जा सकते हैं।