पुलिस ने देश विरोधी अभियान के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया तो नेताजी को लगा कि नेतागिरी का मौका है। पहुंच गए नेतागिरी करने। भाषण देने लगे। बोले -‘इनको पकड़ा है तो उनको भी पकड़ो।’
पुलिस वालों ने कहा -‘नेताजी, वे तो देशभक्त लोग है।’
नेताजी ने फरमाया -‘वो भी तो देश की बात करते हैं। ये विरोध की बात करते हैं तो वो पक्ष की, भक्ति की बात करते है। सवाल ‘देश’ का है। ‘विरोधी’ को पकड़ा है तो भक्त को भी पकड़ो। कानून सबके लिए एक होना चाहिए। बात व्यक्ति की नहीं, देश की है।’
पुलिस वालों को कहना पड़ा कि ये लोग भारत विरोधी पोस्टर लगा रहे थे। इसलिए इनको पकड़ना पड़ा।
नेताजी बोले - उनको भी पकड़ो जो मेरा भारत महान के पोस्टर लगा रहे थे। उनके पोस्टर में भी तो ‘भारत’ शब्द आया था।
पुलिस वालों ने कहा - ये लोग गोली चलाते हैं।
नेताजी ने तर्वâ दिया - तो क्या हमारी फौज गोली नहीं चलाती? तमाम फौजी लोगों को गिरफ्तार कर लेना चाहिए। गोली और गोली में फर्वâ वैâसा? पक्षपात है यह। पक्षपात नहीं होना चाहिए। हम चुप नहीं बैठेंगे। हम वक्त आने पर मुंहतोड़ जवाब देंगे।’
सवाल है कब? कब वक्त आएगा? कब देंगें मुंहतोड़ जवाब? अभी जो मुंहतोड़ सवाल उठा है उसका क्या?
इसी तरह बाढ़ आने पर, सूखा पड़ने पर, तूफान आने पर,, भूकम्प आने पर या ऐसी ही किसी प्राकृतिक आपदा के लिए संदेश होता है -‘‘प्रकृति ने हमारे साथ बड़ा अन्याय किया है। इस विनाश लीला से हम अवश्य निपटेंगे। मैं सौ करोड़ देशवासियों से अपील करता हूँ कि वे मिलकर स्थिति का सामना करें। सरकार। उनकी हर तरह से मदद करेगी।’’
फिर सरकार चली जाती है। कभी केरल के तट पर, कभी हिमालय की वादियों में, कभी विभीषिका का हवाई लुत्फ लेने।
जब भी कभी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता है तब प्रधानमंत्री का बयान होता है। माननीय अध्यक्षजी (स्पीकर महोदय) में गत पांच दशकों से सार्वजनिक जीवन में हूँ और मेरा चरित्र बेदाग रहा है। यह लांछन लगाना ठीक नहीं। फिर पथ से हटने की धमकी और उनकी मान-मनोव्वल का मजेदार खेल।
और प्रधानमंत्री कार्यालय का एक स्थायी स्तम्भ है सीमावर्ती राष्ट्रों को चेतावनी देना। यह चेतावनी लगभग हर बात शब्दों का हेरपेâर करके दी जाती है। यह ऐसी चेतावनी है जिससे कोई चेतता नहीं।
प्रकाश हिन्दुस्तानी