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बिहारी केवल ओरिजनल होते हैं। उनकी नकल कोई नहीं कर सकता। ऋतिक रोशन भी नहीं। यह बात सुपर 30 में साबित हो गई। ऋतिक ने भले ही श को स, छह को छौ और नर्वस होने को नरभस होना उच्चारित किया हो, वे आनंद कुमार कही से नहीं लगे, वे ऋतिक रोशन ही लगते रहे। बाॅयोपिक के दौर में आनंद कुमार की इस बॉयोपिक में बहुत सारे झोल हैं, लेकिन फिल्म तो फिल्म ही है। निर्देशक विकास बहल ने क्वीन फिल्म में अपने निर्देशन का जादू दिखाया था। इसमें वैसा जादू नहीं बना पाए, जो कुछ जादू है, वह आनंद कुमार का ही है और बिहार के लोग जानते हैं कि आनंद कुमार के बारे में वे कौन से तथ्य हैं, जो फिल्म में नहीं दिखाए गए। इस फिल्म में बताया गया है कि कोचिंग कोई शिक्षा दान नहीं और न ही कोई कारोबार है। यह एक संगठित माफिया है। पर्सनल ट्यूशन तो पहले भी पढ़ाई जाती थी और शिक्षकों को उसकी फीस भी मिलती थी, लेकिन अब जो कोचिंग क्लासेस का कारोबार है, उसमें षड्यंत्र, खून-खराबा, कालाधन और राजनीति सभी कुछ है। कोचिंग माफिया जिस तरह पेपर सेट करवाते है, टेस्ट पेपर की मार्किंग में पक्षपात की साजिशें रचते है और प्रतिस्पर्धी संस्थानों को बदनाम करते हैं, उसकी मामूली झलक इस फिल्म में है।

सुपर 30 के कई सारे दृश्य नाटकीय हैं। फिल्म रिलीज होने के एक दिन पहले ही आनंद कुमार ने अपनी ब्रैन हेमरेज वाली बीमारी के बारे में खुलासा किया और कहा कि उनकी जिंदगी अधिक से अधिक पांच साल की और बची है। आनंद कुमार लंबा जिये, यही प्रार्थना है, लेकिन फिल्म के रिलीज होने के ठीक पहले इस तरह की घोषणाओं से शंका होने लगती है। आनंद कुमार कह रहे हैं कि वे इतनी कम उम्र में बायोपिक नहीं चाहते थे, लेकिन वे खुद मौत से जूझ रहे हैं। 2014 में उन्हें पता चला था कि उनके दिमाग की एक नस में ट्यूमर है। इस कारण उनके दाहिने कान से सुनने की क्षमता भी मामूली सी बची है।

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इस फिल्म में आनंद कुमार और उनके एक भाई प्रणव कुमार के परिवार की कहानी दर्शाई गई है। आनंद कुमार गणितज्ञ हैं, शिक्षाविद् है और कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। फिल्म के अनुसार उनका चयन भी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन के लिए हो गया था, लेकिन वे आर्थिक परेशानियों के चलते केम्ब्रिज जाकर पढ़ाई नहीं कर पाए। उनके सुपर 30 में पढ़ाए गए 480 विद्यार्थियों में से 422 का एडमिशन आईआईटी में हो चुका है। फिल्म में 1996 से 2002 तक की कहानी ही मुख्य रूप से है। उनकी कक्षा सुपर 30 के पहले बैच के सभी विद्यार्थी आईआईटी में चुन लिए गए थे।

असल जीवन में आनंद कुमार के पिताजी डाक विभाग में क्लर्क थे। फिल्म में उनके पिता की भूमिका वीरेन्द्र सक्सेना ने की है और उन्हें पोस्टमैन दिखाया गया है। उनके भाई और मां की भूमिका भी उनको आगे बढ़ाने में रही है, जिसे फिल्म में अच्छे से दिखाया है। पिता की असमय मृत्यु और खराब आर्थिक स्थिति के कारण वे सुबह गणित की पढ़ाई करते और शाम को परिवार की मदद के लिए मां के साथ पापड़ बेचने में हाथ बंटाते थे। अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए उन्होंने बच्चों को गणित पढ़ाना शुरू किया।

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हिन्दी माध्यम के सरकारी स्कूल में पढ़े आनंद कुमार अपने सुपर 30 बच्चों को बड़े कोचिंग संस्थान के सामने किस तरह पढ़ाई में स्थान दिला पाते है, इसके बहुत से नाटकीय मोड़ फिल्म में हैं। उनकी प्रेमिका ऋतु की भूमिका करने वाली मृणाल ठाकुर आनंद कुमार की जिद के सामने हार जाती है और उनसे दूर हो जाती है। फिर वह एक नाटकीय मोड़ पर हीरो से टकराती हैं। फिल्म में एक संवाद बार-बार बोला गया है कि पूरा कोचिंग का कारोबार राजा के बच्चों को राजा बनाने में लगा है। साधन संपन्न बच्चों को तो हर कोई आगे बढ़ा रहा है, लेकिन विपन्न बच्चों को पढ़ाने वाला कोई नहीं। आधुनिक द्रौणाचार्य विपन्न बच्चों के साथ वही बर्ताव करते है, जो एकलव्य के साथ हुआ था। वे उनके अंगूठे गुरू दक्षिणा में ले लेते हैं। अधिकांश दर्शकों को फिल्म का पहला आधा भाग ज्यादा दिलचस्प लगा। इंटरवल के बाद नाटकीयता बहुत ज्यादा बढ़ गई।

निर्देशक ने आनंद कुमार से जुड़े विवादों से दूर रहने में भलाई समझी है। करीब 15 दिन पहले ही आईआईटी गुवाहाटी के 4 छात्रों ने केस दर्ज कराया था कि आईआईटी में 26 बच्चों को प्रवेश दिलाने का आनंद कुमार का दावा झूठा है। इन 4 छात्रों ने आनंद कुमार से उन सभी विद्यार्थियों के नाम मांगे है, जिनका चयन आईआईटी में होने का दावा किया गया है। ये चारों छात्र आनंद कुमार से नाराज है और उन्होंने कहा है कि फिल्म के ट्रेलर के जरिये लोगों को गुमराह किया जा रहा है। आनंद कुमार भी बाकायदा कोचिंग के कारोबार में है। सुपर 30 में वे उन बच्चों को ही लेते है, जिनके आईआईटी में चयन होने की संभावना रहती है। फिल्म के निर्देशक विकास बहल पर तनुश्री दत्ता शोषण का आरोप लगा चुकी हैं, इसीलिए पहले विकास बहल का नाम हटा दिया गया था, जो बाद में जोड़ा गया।

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यह फिल्म बार-बार दावा करती है कि जो काबिल होगा, वही राजा बनेगा। आरक्षण के दौर में सभी जानते है कि 90 प्रतिशत पाने वालों का एडमिशन नहीं होता, लेकिन 40 प्रतिशत वालों का हो जाता है। फिल्म में हीरो 1 नंबर कम पाने वाले छात्र को कहता है कि वह फिर से परीक्षा की तैयारी करें। दूसरी बात जिन लोगों का चयन आईआईटी में नहीं हो पाता, उन्हें कमतर नहीं मानना चाहिए। एक परीक्षा में चयन होना या चयन न होना किसी की योग्यता का अंतिम पैमाना नहीं हो सकता। यूपीएससी या आईआईटी में चयन होना ही जीवन का सत्य नहीं है। यह बात फिल्म नहीं बताती। फिल्म यह बताती है कि आनंद कुमार सुपर हीरो है और सुपर हीरो का रोल कोई सुपर हीरो ही कर सकता है। यहां तक कि आनंद कुमार के सुपर 30 के सभी बच्चे भी सुपरस्टार है। शिक्षा जगत के माफिया को समझने के लिए फिल्म देखी जा सकती है। प्रेरणादायी कहानी है।

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