'ऊंचाई' राजश्री प्रोडक्शन की साठवीं फिल्म है। जाहिर है यह फिल्म भी साठोत्तर लोगों के लिए ही है। शाकाहारी भोजनालय की थाली जैसी सादी, कम मसाले वाली, सात्विक थाली जैसी फिल्म है। आजकल की फिल्मों जैसी प्यार मोहब्बत, फाइटिंग, गाने, डांस और वल्गर दृश्य इसमें नहीं हैं। बिना प्याज लहसुन की इस थाली में कलाकारों के नाम पर अमिताभ बच्चन, डेनी, अनुपम खेर, बमन ईरानी, परिणीति चोपड़ा, नीना गुप्ता आदि हैं।
परिणीति ने इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है। फिल्म की खूबी यह है कि इसमें चार बुजुर्ग मित्रों की दोस्ती दिखाई गई है और हौंसला भी। चार में से एक बुजुर्ग की अचानक मृत्यु हो जाती है और वहीं कारण बनता है तीनों मित्रों के एवरेस्ट बेस कैंप तक जाने का। सूरज बड़जात्या ने यह ऐहसान किया है कि तीनों बुजुर्गों को ऐवरेस्ट की चोटी पर नहीं पहुंचाया। बेस कैंप तक जाकर ही सूरज बड़जात्या ने चैन की सांस ली और दर्शकों ने भी। यह सभी जानते हैं कि ऐवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुंचना भी कोई आसान बात नहीं हैं। दिलचस्प और प्रेरणादायक प्रसंगों के साथ तीनों बुजुर्ग अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब होते हैं।
इस फिल्म के बुजुर्गों को दीन-दुनिया की ज्यादा चिंता नहीं। चारों अपनी-अपनी जगह खूब कामयाब हैं। मर्सिडीज गाड़ी में घूमते हैं, कोठियों में रहते हैं, क्लबों में पार्टियां करते हैं। जब सबकुछ हो, तब भी आदमी कोई न कोई स्यापा पाल ही लेता है। ये चारों भी किसी न किसी स्यापे को अपना लेते हैं। फिल्म बुजुर्गों को समझने और जीने का एक बहाना देती है। नेपाल मूल के एक मित्र की अस्थियों की राख को एवरेस्ट बेस कैंप पर पहुंचाने और वहां बिखेरने के दृश्य मार्मिक तो है, लेकिन सवाल यह है कि क्या एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचकर यह कर पाना क्या संभव है।
फिल्म में एडवेंचर, प्यार, इमोशन और इंस्पिरेशन का मेल है। फिल्म का संदेश है कि चलते रहेंगे, तो थकान महसूस नहीं होगी। इंसान के लिए कोई भी लक्ष्य ऊंचा नहीं है। इंसान इस लक्ष्य से प्रेरणा पाकर वहां पहुंच सकता है। दिल्ली, आगरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, काठमांडू और हिमालय की तलहटी के नजारे इस फिल्म में बहुत ही आकर्षक तरीके से दिखाए गए हैं। कहीं-कहीं दो पीढ़ियों के बीच चल रहे द्वंद को दिखाने की कोशिश भी की गई है। सारिका की भूमिका भी इस फिल्म में हैं और वे पहाड़ों पर चढ़ने के तरीके बताती है। एडवेंचर पसंद करने वालों को भी यह फिल्म अच्छी लगेगी।
एवरेस्ट को लेकर कई फिल्में बन चुकी हैं। यह फिल्म एवरेस्ट की पृष्ठभूमि में बनाई गई है। सादगी, मासूमियत, भावुकता और कल्पना का अच्छा मिश्रण सूरज बड़जात्या ने बनाया है। फिल्म के भीतर कई दर्शक आंसू पोंछते भी नजर आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि दर्शकों का बड़ा वर्ग बुजुर्गों का नहीं, बल्कि युवाओं का है।
बुजुर्गों और खासकर शाकाहारी बुजुर्गों को यह फिल्म पसंद आएगी, इसकी गारंटी है। मैं बुजुर्ग नहीं हूं, लेकिन फिर भी मुझे फिल्म पसंद आई। फिल्म देखकर यह एहसास हुआ कि एवरेस्ट बेस कैंप तक तो कभी न कभी जाना ही है, क्योंकि इतना सुंदर हिमालय इसके पहले किसी फिल्म में नहीं देखा।
11 Nov. 2022