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'वीरे दी वेडिंग' फिल्म कहती है कि अगर लड़के शालीनता की सीमा त्याग सकते हैं, तो लड़कियां क्यों नहीं? अगर लड़के गन्दी बात करते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? इस फिल्म में बोल्डनेस के नाम पर सिगरेट पीना, छोटे-छोटे कपड़े पहनना, अशालीन पार्टियां करना, बातचीत में गालियों का इस्तेमाल आदि है। समानता का युग है, इसलिए लड़कियां यह सब करती हैं। इन लड़कियां का किसी के लिए भी कोई उत्तरदायित्व नहीं है। 'बिंदास' लड़कियां !

... और बिंदास लड़कियां अगर समाज से केवल लेना ही लेना चाहे तो फिर दुखी होंगी ही। 4 लड़कियां हैं, 10 साल बाद में चारों मिलती हैं और अपने-अपने दुखडे 'दुखड़े' बताती हैं, अश्लील जोक कहती हैं, खुलेपन में बातें करती हैं और हमेशा टिपटॉप कपड़े पहनती हैं। यह लड़कियां जिस दुनिया में रहती है वहां उदास रहना भी उनको बड़ा रोमांटिक लगता है। शहरी उच्च वर्ग में भी एक ख़ास हिस्से के लिए है यह फिल्म, जिसमे शब्दों की गरिमा का कोई ख्याल नहीं रखा जाता।

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फिल्म में ओवर एक्टिंग है, डायलॉग में भद्दापन है, जगह जगह फूहड़ हालात हैं। वीरे दी वेडिंग फिल्म में देखने लायक कुछ है नहीं। अगर आप अपने आप में ही मगन हैं तो फिर समाज को आप दोषी कैसे कह सकती हैं?
पैसे की बर्बादी है यह फिल्म !

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