दो सप्ताह पहले संजय दत्त पर बनी बायोपिक संजू रिलीज़ हुई थी, इस सप्ताह हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह के जीवन पर बनी बायोपिक सूरमा रिलीज हुई है। दोनों बायोपिक एक दूसरे के विपरीत है। संजू में जहाँ एक नशेड़ी, आवारा और कानून का मखौल उड़ानेवाले व्यक्ति का महिमामंडन था तो सूरमा में एक संघर्षशील हॉकी खिलाड़ी की कहानी है, जो पंजाब के एक साधारण परिवार से है और उसमें अपने आप के लिए, परिवार के लिए और देश के प्रति प्रतिबद्धता नज़र आती है।
संजू में रणबीर कपूर ने संजय दत्त की भूमिका शानदार तरीके से निभाई थी। कहीं लगा ही नहीं कि वह संजय दत्त नहीं, रणवीर कपूर हैं। वैसे ही सूरमा में दिलजीत दोसांझ का अभिनय इतना स्वाभाविक है कि कभी लगता ही नहीं कि वह दिलजीत दोसांझ है संदीप सिंह नहीं। संदीप की यात्रा की कहानी हरियाणा की शाहाबाद के संदीप सिंह और उनके बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह की है। दोनों ने जिस तरह अभिनय किया है, वह विलक्षण है। तापसी पन्नू ने महिला हॉकी खिलाड़ी हरप्रीत के रोल को साकार किया है और इतना स्वाभाविक अभिनय किया है कि आपको लगता है कि वह हॉकी के खिलाड़ी ही हैं।
सूरमा फिल्म की खूबी यह है कि इसमें हॉकी के मशहूर ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह की प्रतिभा को 360 डिग्री में दिखाया गया है। संजू में केवल मनोरंजन था और भावनाएँ शून्य थी, वही सूरमा फिल्म में मनोरंजन के साथ-साथ भावपूर्ण घटनाक्रम भी है। इस फिल्म में परिवार के प्रति प्रतिबद्धता देखने को मिलती है। देश के प्रति कुछ करने का जज्बा भी समझ में आता है।
दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में ऐसे लोगों को दिखाया गया है जो अपने परिवार के लिए समर्पित हैं। अपने प्रेमी और प्रेमिका तथा दो भाइयों की बॉन्डिंग बहुत अच्छी है। पिता-पुत्रों के बीच के भावनाप्रधान रिश्तों, प्रेमी-प्रेमिका की एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता के दृश्य बहुत ही स्वाभाविक हैं।
इस फिल्म में आपको ऐसा लगता है कि आप हॉकी का मैच ही देख रहे हैं। हिप हिप हुर्रे, जो जीता वही सिकंदर और चक दे इंडिया के क्लाइमेक्स की तुलना में इसका अंत थोड़ा सा कम रोमांचक है। खेल के प्रति युवक की प्रतिबद्धता दिखाई गई हैं और उसके जीवन के उतार चढ़ाव प्रेरणादायक तरीके से दिखाया गया है।
अंगद बेदी ने दिलजीत दोसांझ के बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह का रोल बहुत ही स्वाभाविक तरीके से किया है। संदीप के पिता के रोल में सतीश कौशिक कौशिक ने थोड़े कॉमेडी वाले अंदाज़ में हैं। कुलभूषण खरबंदा और विजय राज भी अपनी जगह खरे हैं।
अगर आपकी दिलचस्पी हॉकी में है तो यह फिल्म आपके लिए किसी तोहफे से कम नहीं, लेकिन अगर आप हॉकी नहीं भी खेलते हैं तब भी आप इसे अवश्य देखिए। मनोरंजक, प्रेरणादायी और खूबसूरत फिल्म है।
13 July 2018