विश्वरूपम-2 को विवादों में घसीटना गलत है, क्योंकि इस फिल्म में विवादास्पद कुछ भी नहीं। इस फिल्म की आलोचना करना भी ठीक नहीं है। क्योंकि यह आतंकवाद के खिलाफ फिल्म बनी है, जिसमें यह डायलॉग दोहराया गया है कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं। थकेले कमल हासन की यह थकेली फिल्म है, जिसमें कमल हासन के अलावा शेखर कपूर, राहुल बोस, वहीदा रहमान जैसे कलाकार भी हैं, जो सब थकेले लगते है। कमल हासन ने फिल्म बनाई है, पैसे लगाए है, तो पर्दे पर उनका कल्पना से परे एक्शन करना और रोमांस करना तो बनता है। अब यह आपका दुर्भाग्य की आप उसे सह पाए या नहीं।
एजेंट विनोद टाइप कहानी है इसकी। कोई आतंकवादी संगठन है, जो तबाही मचाना चाहता है और रॉ के लोग है, जो तबाही रोकना चाहते है। हीरो सेना में अधिकारी है और योजनाबद्ध तरीके से उसे मुस्लिम नाम देकर रॉ तक पहुंचाया जाता है, ताकि वह आतंकवाद को रोक सके। इस फिल्म में कमल हासन ने काफी वक्त जाया किया है। अगर आपके पास भी काफी वक्त और पैसे हो, तो जाया कर सकते है।
कहानी फ्लैशबैक में चलती ही जाती है। दृश्य लंबे खिंचते चले जाते है। कई दृश्य तो दोबारा दिखाए जाते है। पूजा कुमार और एंड्रीया जर्मिया नामक दो अभिनेत्रियां भी हीरो के साथ रहती है और वे तरह-तरह के करतब दिखाती रहती है। यह फिल्म पांच साल पहले आई विश्वरूपम की अगली कड़ी के रूप में प्रचारित की गई है। पहली फिल्म रिलीज होते ही इसे बनाने की योजना तैयार कर ली गई थी। फिल्म के कई सारे सीन (या कहे कि पूरी फिल्म ही) जबरन खींची गई है।
कमल हासन के प्रेम दृश्य और वहीदा रहमान के मां के रोल वाले सीन को रबर की तरह खींचा गया है। असंभव एक्शन, वहीदा रहमान की एल्जाइमर बीमारी, राहुल बोस का हुलिया, अनावश्यक अंडरवाटर सीन्स फिल्म की विश्वसनीयता घटा देते है। प्रसून जोशी के लिखे दो गाने जरूर अच्छे है। शंकर एहसान रॉय ने अच्छा संगीत दिया है। यह फिल्म हिन्दी के साथ ही तमिल, तेलुगु और मलियालम में भी रिलीज हुई है। फिल्म का कथानक कच्चा है और कई बातें अविश्वसनीय लगती है।
पूरी तरह से थकेली फिल्म है, सिनेमा घर में सोने के लिए जाना हो, तो जा सकते है।