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दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म 2.0 देखने का मजा बड़े सिनेमाघर में और थ्रीडी में ही है। इस फिल्म का स्टार कलाकार कोई है, तो वीएफएक्स टेक्नीक ही है, जिसके माध्यम से रोबोट फिल्म की तरह ही अनेकानेक रजनीकांत नजर आते है। शानदार तकनीक दर्शकों को चकित कर देती है और उन्हें लगता है कि फिल्म के पैसे वसूल हो गए। फिल्म में रजनीकांत डॉ. वशीकरण और चिट्टी के रोल में तो है ही, अक्षय कुमार खलनायक के रूप में हैं। इसी कड़ी की पिछली फिल्म रोबोट में ऐश्वर्या राय हीरोइन थी। इस फिल्म में रजनीकांत केवल उनसे टेलीफोन पर ही बात करते है। हीरोइन की भूमिका इसमें है ही नहीं। एमी जैकसन महिला रोबोट बनी है और दिलचस्प तरीके से बनी है।

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फिल्म का संदेश यह है कि इंसानियत को इंसान ही बचा सकता है। मोबाइल टॉवर से होने वाला विकिरण पक्षियों को तबाह कर रहा है और पक्षियों के बिना इंसान भी नहीं बचेंगे। पक्षियों से अगाथ प्रेम करने वाला प्रोफेसर सरकार और मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाता है और मोबाइल टावर से होने वाला विकिरण रोकने के लिए प्रयास करता है। हताशा में वह आत्महत्या कर लेता है और उसका नया अवतार पक्षीराज बन जाता है। मोबाइल यूजर को अपना और प्रकृति का दुश्मन मानकर हिंसात्मक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। कभी वह बाज बन जाता है, तो कभी वैज्ञानिक वशीकरण का रूप धारण कर लेता है। 1990 के दशक की अलफ्रेड हिचकॉक की फिल्म द बर्ड्स में विशालकाय पक्षी महिला पर हमला करता है, लेकिन यहां नजारा उससे भी आगे का है।

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इस फिल्म की शूटिंग के लिए लाखों मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया गया। मोबाइल को जिस खतरनाक अंदाज में दिखाया गया, उससे हर मोबाइल उपभोक्ता कहीं न कहीं सहम जाता है। फिल्म की कहानी और दृश्य लॉजिक से परे है। कहीं इंसान की आत्मा पक्षी की आत्मा में एकाकार हो जाती है, तो कहीं हीरो अपने दो हाथों में सैकड़ों बंदूके थामकर चारों तरफ दनादन गोलियां चलाता रहता है। एक पक्षी वैज्ञानिक और मानवता का पक्षधर किस तरह पक्षियों को बचाने के लिए हजारों लोगों की जान से खेल जाता है। फिल्म में कहा गया है कि यह धरती सिर्फ मनुष्यों की प्रापर्टी नहीं है, इस पर धरती के सभी जीवों का अधिकार है। पूरी धरती के मनुष्य जितना भोजन खाते है, उससे 10 गुना ज्यादा भोजन पक्षी खाते है। पक्षी जिस तरह कीटों को भोजन बनाते है, अगर वे न करें, तो धरती पर हाहाकार मच जाए। इस फिल्म में 2-2 रजनीकांत तो है ही, लगभग हर सीन में रजनीकांत ही छाये रहे। अक्षय कुमार की असली आमद तो इंटरवल के बाद होती है।

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फिल्म में एक बात गौर करने वाली है कि मोबाइल टाॅवर से होने वाले विकिरण के लिए मोबाइल कंपनियों की होड़ रोकने की बात कही गई है। कम से कम टॉवर लगाए जाए, कहा गया कि इतने बड़े अमेरिका में केवल पांच मोबाइल कंपनियां है। भारत से ज्यादा आबादी वाले चीन में केवल 3 कंपनियां है, तो फिर भारत में इतनी कंपनियां क्यों? क्या यह भारत में जियो के ही मोबाइल नेटवर्क के एकाधिकार का पक्ष लेने वाली बात नहीं है।

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फिल्म के शानदार इफेक्ट्स और फिल्मांकन देखकर पैसे वसूल हो जाते है। टीवी या लैपटॉप पर शायद उतना मजा ना आए।

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