Bookmark and Share

Kedarnath-1

कहा जाता है कि प्रेम शाश्वत होता है, इसलिए प्रेम कहानियां भी शाश्वत होती है। प्रेम कहानियों में दो पात्र होते है और बॉलीवुड में लगभग सभी फिल्मों में ये दो पात्र समान ही होते है। इनके बीच एक गहरी खाई होती है। इनके परिवार वाले होते है, जो प्रेम के खिलाफ होते है। परिस्थितयां होती है और प्रेम परवान चढ़ते-चढ़ते दुखांत या सुखांत तक पहुंचता है। हिन्दी में प्रेम कहानियां सुखांत ज्यादा होती है। दर्शकों को यही पसंद है। हीरो अमीर होगा तो हीरोइन गरीब, हीरो उच्च जाति का होगा, लड़की उच्च जाति की नहीं होगी, उन दोनों के धर्म अलग-अलग हो सकते है, उनके बीच देश की सीमाएं भी हो सकती है और उम्र की सीमाएं भी। पात्र और पृष्ठभूमि अलग होती है। जैसे 1942 लव स्टोरी का बैकड्राफ्ट स्वतंत्रता संग्राम था, जैसे बाम्बे का बैकड्राफ्ट मुंबई के दंगे थे, टाइटेनिक में डूबता हुआ जहाज था, वैसे ही इस फिल्म के पार्श्व में केदारनाथ है। केदारनाथ है, तो पर्यावरण की बात भी होगी। पिट्ठू वाले मुस्लिमों और ब्राह्मणों की चर्चा भी होगी और वीएफएक्स का इस्तेमाल करके 4 साल पहले की केदारनाथ की महाजलप्रलय की भी चर्चा होगी।

Kedarnath-2

लोगों ने केदारनाथ से बहुत ज्यादा आशाएं लगा रखी थी। फिल्म ठीक-ठाक है बस। देख सकते है और नहीं भी देख सकते है। अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान अपनी मां जैसी लगती है और सुशांत सिंह राजपूत केदारनाथ के पिट्ठू वाले। सारा अली खान फिल्म में ब्राह्मण पुजारी की बेटी कम और सैफ अली खान - अमृता सिंह की बेटी ही ज्यादा लगी है। सुशांत सिंह ने बहुत मेहनत की, लेकिन पता नहीं क्यों, वह प्रभाव नहीं दिखा पाए। फिल्म है, तो फार्मूले ही फार्मूले है। जिद्दी सी नकचढ़ी हीरोइन, पारंपरिक ब्राह्मण परिवार, घर वालों की तरफ से शादी-ब्याह के दबाव, बीच में धर्म की दीवार, आर्थिक खाई, विकास के नाम पर निर्माण कार्य, एक-दूसरे पर मर-मिटने के वादे और कस्में और अंत में होई है, जो राम रचि राखा। खेल खत्म, पैसा हजम।

Kedarnath-3

कई दर्शकों को लगता है कि अभिषेक कपूर ने बेमन से फिल्म बनाई है। इसके पहले वे रॉक ऑन और काई पो चे जैसी फिल्म बना चुके है। अच्छा लगता है कि फिल्म में केदारनाथ का फिल्मांकन सुंदर तरीके से किया गया है, जो लोग केदारनाथ नहीं गए, वे फिल्म देखकर संतोष कर सकते है। शुरुआत से ही केदारनाथ के दृश्यों को जैसे दिखाया गया, उससे दर्शकों के मन में केदारनाथ का भूगोल समझ में आने लगता है। फिल्म का कई जगह विरोध भी किया गया था, क्योंकि इसमें ब्राह्मण लड़की और मुस्लिम युवक का प्रेम दिखाया गया था। फिल्म में कुछ डाॅयलाग भी है, जो सांप्रदायिक सौहार्द्रता का प्रतीक है। फिल्म की खूबी यह है कि यह केवल 2 घंटे की है। पहला घंटा नकचढ़ी हीरोइन के नखरे देखते-देखते बीत जाता है और दूसरा प्रेम की ट्रेजडी देखते-देखते।

Kedarnath-4

कहावत है कि नेवर जज ए बुक बाय एट्स कवर। उसी तरह कहा जा सकता है कि नेवल जज ए मूवी बाय एट्स ट्रेलर। कई फिल्मों का ट्रेलर बहुत अच्छा होता है, लेकिन फिल्म सामान्य निकलती है। यह भी अच्छे ट्रेलर वाली सामान्य लव स्टोरी है।

Search

मेरा ब्लॉग

blogerright

मेरी किताबें

  Cover

 buy-now-button-2

buy-now-button-1

 

मेरी पुरानी वेबसाईट

मेरा पता

Prakash Hindustani

FH-159, Scheme No. 54

Vijay Nagar, Indore 452 010 (M.P.) India

Mobile : + 91 9893051400

E:mail : prakashhindustani@gmail.com