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DSC 0044विश्व में हिन्दी के पहले पोर्टल वेबदुनिया काम के संस्थापक सम्पादक प्रकाश हिन्दुस्तानी का मानना है कि अभी हिन्दी में इंटरनेट के विस्तार की अनंत संभावनाएं है। प्रिंट मीडिया के अनेक पत्र पत्रिकाओं (यथा नई दुनिया, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर) के अलावा प्रकाश हिन्दुस्तानी ने फिल्म,टीवी और विज्ञापन माध्यम में भी कार्य किया है। उन्हें डॉ. धर्मवीर भारती, राजेन्द्र माथुर, सुरेन्द्र प्रतापसिंह, डॉ. कन्हैयालाल नंदन, गणेश मंत्री, डॉ. विद्यानिवास मिश्र सहित अनेक दिग्गज सम्पादकों के साथ कार्य करने का अनुभव है। इन्टरनेट के क्षेत्र में हिन्दी को स्थापित करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की ओर हिन्दी को यथोचित सम्मान दिलवाया। उनकी अपनी वेबसाइट (......) प्रकाश हिन्दुस्तानी डॉट काम भी दुनिया में कहीं भी देखी जा सकती है। स्वाति एस. तिवारी ने प्रकाश हिन्दुस्तानी विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की। प्रमुख अंश : 
 
 
प्रश्न : इन्टरनेट की पत्रकारिता किस तरह प्रिंट और टीवी की पत्रकारिता से अलग है :
उत्तर : इंटरनेट की पत्रकारिता प्रिंट और टीवी दोनों ही तरह की पत्रकारिता का मेल है। इसमें दोनों की खूबियां है। प्रिंट मीडिया की खूबी यह है कि आप जब चाहें, तब मनचाहा लेख या खबर मनचाहे समय पर पढ़ सकते हैं। अब एक अखबार आप के हाथ में हैं तो यह आपकी इच्छा कि आप पहले खबर पढ़े या भविष्यफल। टीवी के दर्शक को यह सुविधा नहीं है। जब कार्यक्रम के अंतर्गत मौसम दिखाया जाएगा, तभी आप मौसम के बारे में जान सकते हैं। इंटरनेट पर यह सब आपकी इच्छा पर है। आप चाहे तो पहले मौसम देख लें, चाहें तो भविष्यफल पढ़ लें। आप चाहें तो पहले मनचाहा आडियो सुन ले या मनचाहे वीडियो किलीपिंग देख लें। अखबार या पत्रिका में सीमित पृष्ठ होते हैं और टीवी पर कार्यक्रम की अवधि सीमित होती है, इंटरनेट पर ऐसा कुछ भी नहीं। 
 
प्रश्न : इंटरनेट पर हिन्दी का भविष्य वैâसा है?
उत्तर : इंटरनेट पर हिन्दी छा जाने वाली हैं। अभी तक लोगों को यह गलत फहमी है कि कम्प्यूटर केवल अंग्रेजी भाषी लोगों के लिए है। दरअसल ऐसा है नहीं। कम्प्यूटर या इंटरनेैट तो केवल माध्यम है। जैसे-जैसे लोग हिन्दी को अपनाएंगे, इंटरनेट पर हिन्दी का वर्चस्व बढ़ता ही जायेगा। जब स्टार टीवी ने भारत में कार्यक्रम शुरू किये थे, तब उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि वे केवल हिन्दी में कार्यक्रम बनाकर ही लोकप्रियता पा सकते हैं। आज स्टॉर चैनल तो क्या, एम टीवी और वी टीवी चैनल भी हिन्दी में कार्यक्रम दे रहे हैं। मुझे याद है कि जब सुशील दोषी ने हिन्दी में क्रिकेट की कमेंटरी शुरू की थी, तब लोग इस बात पर हंसते थे ओर कहा करते थे कि क्रिकेट की कमेंटरी तो हिन्दी में हो ही नहीं सकती। आज बगैर हिन्दी कमेंटरी के कोई भी प्रमुख मैच टीवी पर दिखाया ही नहीं जा सकता। फिर भारत के अलावा दुनिया भर में न्दिी भाषी लोग हैं। ऐसे भी करोड़ों लोग हैं, जिनकी मातृभाषा तो पंजाबी, मराठी, गुजराती या उर्दू है, लेकिन वे हिन्दी बहुत अच्छी तरह जानते हैं।
 
प्रश्न : क्या हिन्दी के विकास की गति से आप संतुष्ॅट?
उत्तर : हिन्दी के विकास की गति अच्छी है। आज हिन्दी भाषी लोगों में आत्मसम्मान आया है। आज से बीस साल पहले विमान में यात्रा करते समय हिन्दी में बात करने में लोग शर्माते थे, आज आप गर्व से हिन्दी में बात कर सकते हैं। मुम्बई से न्यूयार्वâ की उड़ान में आप जगजीतसिंह की गजलें सुन सकते हैं या एअर होस्टेस से हिन्दी का अखबार मंगवाकर पढ़ सकते हैं। कोडक फिल्म खरीदने पर आपको उसके उपयोग की विधि हिन्दी में भी मिल सकती है। दुबई हवाई अड्डे पर आपको हिन्दी में निर्देश लिखे दिख सकते हैं। कुल मिलाकर हिन्दी दुनिया भर में बढ़ ही रही है। 
 
प्रश्न : अंग्रेजी की वेबसाइटों की तुलना में हिन्दी की वेब साइट इतनी कम क्यों है?
उत्तर : अभी इस क्षेत्र में उतनी जागरूकता नहीं आई है। लेकिन इंटरनेट के प्रति लोगों के मन में जो भय की भावना थी, वह दूर हो रही है। याद रखिए कि अगर आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि मानव सभ्यता के इतिहास में कोई भी चीज इतनी तेज गति से नहीं बढ़ी, जितनी तेज गति से इंटरनेट बढ़ रहा है। 
 
प्रश्न : क्या कोई तकनीकी रूकावट है इंटरनेट पर हिन्दी के आने में?
उत्तर : हां, छोटी मोटी रूकावटें है ये सब जल्दी ही ये सब दूर हो जाएंगी। देखिए भारत में व्यवसायिक रीप से फिल्में बनना देर से शुरू हुआ था, लेकिन आज भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा फिल्में बनती है। यहां हर रोज औसतन एक करोड़ से भी ज्यादा लोग सिनेमाघर में जाकर फिल्में देखते हैं। हिन्दी में इंटरनेट बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया तो इसका एक कारण है एक समान टीउप पेâस या समान की बोर्ड का नहीं होना। करीब डेढ़ दर्जन तरह से हिन्दी के की बोर्ड उपलब्ध है और प्रâोंट की संख्या तो चालीस है। अंग्रेजी में यह दिक्कत नहीं। की बोर्ड, चाहे टाइपरायटर का हो या कम्प्यूटर का, अंग्रेजी में वह एक समान है। जहां ‘ए’ की वुंâजी आती है, सभी जगह वहां ‘ए’ की वुंâजी मिलेगी। भारत सरकार के राजभाषा। विभाग को इस दिशा में कार्य करना चाहिए और सर्वत्र एक समान की बोर्ड स्वीकार किया जाए, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। 
 
प्रश्न : क्या बदलाव आया है इंटरनेट के कारण पत्रकारिता में?
उत्तर : इंटरनेट मूलत: एक सोर्स मीडि़या है। इससे पत्रकारों के आपसी सम्पर्वâ में वृद्धि हुई है, पईकारों को अनेक स्रोतों में बेहिसाब जानकारी उपलब्ध है। विश्व स्तर पर पत्रकार बिरादरी का सम्पर्वâ बढ़ गया है। दूसरी बात यह है कि इंटरनेट के कारण कुशल और अनुभवी पत्रकारों की मांग बढ़ गई है। उनके बीच व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है। एक ओर बात इंटरनेट के कारण यह हुई कि अब पत्रकारों को अपनी अभिव्यक्ति के लिए किसी बड़े प्रतिष्ठान या व्यवसायिक घराने से जुड़ने की मजबूरी नहीं है। अब कोई भी व्यक्ति अपनी निजी वेबसाइट बनाकर अपनी बात दुनिया से कह सकता है। ऐसा पहले कभी भी संभव नहीं था। 
 
प्रश्न : क्या कभी इंटरनेट टीवी की जगह ले लेता?
उत्तर : इंटरनेट पर सर्पिंâग टीवी पर केबल के माध्यम से हो सकेगा, तब उसकी पहुंच का दायरा बहुत बढ़ जाएगा। लेकिन टीवी जैसी लोकप्रियता तो उसे शायद कभी नहीं मिलेगी। लेकिन टीवी पर गंभीर पत्रकारिता करना बड़ा ही मुश्किल काम है क्योंकि वहां जरा भी बोर होने पर दर्शक चैनल बदलने लगता है।
 
प्रश्न : आपने प्रिंट, टीवी, फिल्म और इंटरनेट सभी मीडिया में काम किया है। इनमें से आप किसे सर्वश्रेष्ठ मानते है?
उत्तर : सभी माध्यमों की अपनी खूबी है और उनमें काम करने का अपना मजा है। लेकिन मेरा पहला प्रेम प्रिंट मीडि़या से हुआ था। वही अब भी है।
 
प्रश्न : आपने अनेक सम्पादकों के साथ काम किया है। इनमें से आप किसे सर्वश्रेष्ठ मानते हैं?
उत्तर : राजेन्द्र माथुर साहब मेरे गुरू हैं। वे ही मुझे शासकीय सेवा  से पत्रकारिता में लाए। ‘नईदुनिया’ ओर फिर बाद में ‘नवभारत टाइम्स’ के मुम्बई संस्करण में करीब आठ साल तक मैंने उनसे दीक्षा ली है। ‘धर्मयुग’ में डॉ, धर्मवीर भारती के साथ काम करते हुए मैंने कई बातें सीखी और सुरेन्द्र प्रतापसिंह से भी बहुत सी बातें ‘नवभारत टाइम्स’ में सीखी। डॉ. विद्यानिवास मिश्र के अनुभव का कोई जवाब नहीं।
 
प्रश्न : इन सम्पादकों की श्रेणी बनाना हो तो आप वैâसे बनाएंगे?
उत्तर : यहां आप मुझे न पंâसाइये। मैं यही कहना चाहूंगा कि सम्पादकों की तीन श्रेणियां है। पहले तो वे जो बहुत ही अच्छे सम्पादक ओर बहुत अच्छे इन्सान होने के साथ ही बेहतरीन इंसान भी है। अब आप नाम न पूंछे दूसरी श्रेणी में वे हैं जो सम्पादक तो अच्छे हैं, पर इंसान घटिया हैें। तीसरी श्रेणी में ऐसे लोग है जो घटिया सम्पादक है और इन्सान भीघटिया है। मैं किसी का भी नाम लेना यहां जरूरी नहीं मानता।
 
प्रश्न : आपने अपनी खुद की वेबसाइट अंग्रेजी में क्यों बनाई?
उत्तर : मेरी वेबसाइट कमर्शियल नहीं है। प्रकाश हिन्दुस्तानी डॉट कॉम नाम जरूर है, लेकिन वह कमर्शियल नहीं है। इसे होमपेज कहा जाता है। इसे हिन्दी में बनाना जाहता था लेकिन उसके लिए टेव्नâॉलाजी मेरे पास मौजूद नहीं थी। मेरे पास कोई ऐसा हिन्दी फोंट उपलब्ध नहीं था, जो कॉपी राइट कानून से मुक्त हो।
 
(मध्यप्रदेश संदेश)
प्रकाश हिन्दुस्तानी 

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