रॉस द्वीप, अंडमान की 'डॉक्टर डूलिटिल' यानी अनुराधा राव. अंडमान निकोबार जाना हो तो वहां सेल्युलर जेल देखने जाइये और रॉस द्वीप जाकर अनुराधा राव से भी ज़रूर मिलिए, वरना आपकी यात्रा बेकार रहेगी. ब्रिटिश नेविगेटर डैनियल रॉस के नाम पर इसका नामकरण हुआ है, लेकिन इस द्वीप का नाम अनुराधा राव के नाम पर होना चाहिए. 52 साल की अनुराधा प्राइवेट टूर ऑपरेटर हैं, लेकिन वे इस द्वीप की असली पहचान हैं.
अनुराधा तीन साल की थीं, पिता की मौत हो गई. वे तबसे यहीं रहती हैं. अनजान मछुवारों के साथ. आज करीब 200 एकड़ के इस द्वीप पर अगर हज़ारों वन्य जीव बच सके हैं तो अनुराधा की वजह से. लड़कपन में उन्होंने देखा कि यहाँ सरकारी अफसर, टूरिस्ट आते, हिरन और मोर का शिकार करते और जंगल से लकड़ी काटकर उन्हें पकाते और खा पीकर गन्दगी करके चले जाते. किशोरावस्था में आते ही उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया. कई बार लोगों ने उन्हें पीटा, उनके हाथ-पाँव तोड़ डाले, डराया-धमकाया कि बीच में न आएं, लेकिन वे नहीं मानीं और शिकारियों पर पत्थरों से हमला करके उन्हें भागने लगीं. लोग उन्हें पागल समझते थे. लेकिन इसी कारण यहाँ वन्य जीवों की संख्या बढ़ने लगी.
अनुराधा के जीवन में बदलाव आया 1987 में, जब भारतीय नौ सेना ने द्वीप को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया. (1979 में यहाँ आईएनएस जवारा की स्थापना हुई थी. जवारा अंडमान के आदिवासियों की एक जाति है) सेना अधिकारीयों ने उनकी बातें सुनी, समझीं और उनकी मदद की. साथ ही उन्हें रॉस द्वीप का ऑफिशियल गाइड भी बनाने में सहयोग दिया. आज वे यहाँ की सबसे लोकप्रिय गाइड हैं. वे न केवल पर्यटकों की मदद कराती हैं, बल्कि द्वीप के हजारों हिरणों, मोरों, गिलहरियों, तोतों और दूसरे प्राणियों का भी 'मार्गदर्शन' करती हैं. सैकड़ों प्राणियों के उन्होंने नाम रखे हैं, उन्हें नाम लेकर पुकारने पर वे दौड़े-उड़े चले आते हैं. जैसा कि हॉलीवुड कॉमेडी फिल्म 'डॉक्टर डूलिटिल' में एडी मर्फी वन्यजीवों की भाषा जानते हैं, वैसे ही अनुराधा राव सचमुच उनकी भाषा में बात करती हैं. ये जानवर उनकी बात सुनते हैं और कहा मानते हैं. एक दृष्टिहीन हिरण उन्हीं के कारण जीवित बच सका है. पशु पक्षियों का बीमार इलाज वे जंगली फलों, फूलों और पत्तियों से करती हैं.
दो साल पहले ही गणतंत्र दिवस पर उन्हें लेफ्टिनेंट गवर्नर ने सम्मानित किया था. उन्हें टूरिस्ट गाइड के साथ ही टूरिस्ट फेसेलिटर भी बनाया गया है. वे सेल्युलर जेल की दास्तान जीवंत तरीके से सुनाती हैं. वे आम तौर पर पर्यटकों से पैसे तभी लेती हैं, जब उन्हें उसकी ज़रुरत होती है.
रॉस द्वीप पोर्ट ब्लेयर से करीब दो किलोमीटर पूर्व में है. पहले यहाँ जापान का कब्ज़ा था और दिसंबर 1943 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने यहाँ भारतीय तिरंगा ध्वज फहराया था. सेल्युलर जेल के अलावा यहाँ भी लाइट एंड साउंड शो होता है. पहले यह अंडमान द्वीप समूह का मुख्यालय था, भूकम्प में तबाही के बाद यहाँ के दफ्तर पोर्ट ब्लेयर ले जाये गये.
(अनुराधा राव से परिचय करानेवाले ब्लॉगर श्री सुरेश चिपलूनकर का आभार. छायाकार हैं स्नेहा रंजन और रामकृष्णन रामनाथन)