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जब अमित नागपाल छोटे से शहर की स्कूल में पहली कक्षा में थे, तब उनकी आंखों पर मायनस सिक्स का मोटा चश्मा था। डॉक्टर ने कहा- तुम क्यों स्कूल गए? इतना मोटा चश्मा लगाते हो, दसवीं तक जाते-जाते तो अंधे हो जाओगे। स्कूल में उन्हें किसी आउटडोर खेल में शामिल नहीं किया जाता. लेकिन अमित ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा। पीएचडी की और विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी, लेकिन आज भी खुद को स्टूडेंट ही समझते हैं। उन्हें टीवी, सिनेमा, कंप्यूटर से दूर रहने की सलाह भी दी जाती थी, वह भी नहीं मानी गई. आज वे ऐसे क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जिसे लोग काम ही नहीं मानते थे. वे इंटरनेशनल बिजनेस स्टोरीटेलर, स्पीकर, डिजिटल स्टोरीटेलिंग कोच होने के साथ ही भारत के प्रमुख सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं. उन्हें भारत का माइकल मारगोलिस माना जाता है.

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amitbachchaएक ही कंपनी में होने की वजह से अमित से मुलाकात हुई थी। वे कार्पोरेट कम्युनिकेशन्स विभाग में थे और मैं न्यूज में। शुरू में  तो मैं उन्हें 'खिसका हुआ' समझता था, क्योंकि जो बातें वे करते थे,  वे मेरी समझ से परे थीं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और उसकी अहमियत के बारे में जब भी वे बात करते थे, तो मुझे लगता था कि यह व्यक्ति भारत में रहने के काबिल नहीं है, लेकिन अमित यहीं कहते थे कि यह दौर भारत के महानगरों में आ रहा है और अब जल्दी ही बी टाउन में भी आ जाएगा। जब वे कहते कि सोशल मीडिया एक दिन मास मीडिया को टक्कर देगा और कोई आश्चर्य नहीं कि किसी दिन वह और भी आगे निकल जाए। लगता था कि यह आदमी हवाबाज है और लोगों को उल्लू बनाने का काम करता है, तब मैं उनकी बात पर यकीन नहीं कर पाता था. 

पर आज मुझे उसका यकीन हो रहा है।  लेकिन धीरे-धीरे मेरी भावना बदलती गई।

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अमित नागपाल सोशल मीडिया के डायनेमिक्स के बारे में जो बातें बताते है, वे अद्भुत है। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया में एक टर्म है एडीडी यानी अटेंशन डेफिशिट डिसऑर्डर। इसका मतलब यह है कि लोग टेक्स्ट की जगह विजुअल्स को पहले देखते है और विजुअल्स उन्हें याद रहते है। सोशल मीडिया पर इसीलिए ग्रे मेटर की जगह फोटो, वीडियो और स्लाइड शो ज्यादा पसंद किए जाते हैं। धीरे-धीरे हमारे अखबार भी विजुअल कंटेंट से भरे रहने लगे हैं.

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आर्ट ऑफ़ स्टोरी टेलिंग के बारे में अमित नागपाल का मानना है कि अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचे है, तो इसमें उनकी स्टोरी टेलिंग की प्रतिभा का भी बढ़ा योगदान है। अगर राहुल गांधी के पास यह कला होती, तो शायद कांग्रेस की इतनी बुरी गत नहीं होती। नरेन्द्र मोदी जो भी बात कहते है वह लोगों को आकर्षित करनेवाली, दिल को छूने वाली और बुद्धिजीवियों को कनेक्ट करने वाली होती है।एनकडोट्स (किस्सों), मुहावरों  और जुमलों का इस्तेमाल करते हैं, और  पहली बार में ही लोगों का ध्यान खींच लेते है। मेरी किताब ‘चायवाले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी’ में भी मैंने यह बात लिखी थी, जिसे अमित नागपाल अपने भाषणों में उद्धृत करते हैं।

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फेसबुक पर सबसे ज्यादा लाइक्स और कमेंट्स कैसे पाये  जा सकते है? इसके जवाब में उनका कहना है कि औसतन 20 रीडर किसी पोस्ट को पढ़ते है, तब एक लाइक जमा होता है और औसतन 50 यूजर की नजरों से गुजरने के बाद कोई एक कमेंट दर्ज होता है। सबसे ज्यादा वायरल पोस्ट वह होती है, जिसे दूसरे यूजर शेयर करते हों। फेसबुक के यूजर आमतौर पर एक्स्ट्रीम कमेंट्स को ज्यादा लाइक करते है। भारत में अच्छे लाइक्स और कमेंट सुन्दर महिलाओं को  मिलते है। इसी तरह यदि आप अतिवादी पोस्ट लिखें, तीखी भाषा बोलें, पुरुषों को गरियाएं, कम्युनल बातें करें तो भी लाइक्स ज्यादा मिलेंगे। या तो आप किसी कि भक्ति करें या जी भरकर गालियां दे। आपको लाइक्स ही लाइक्स मिलेंगे। सरल शब्दों में अगर आपकी पोस्ट संतुलित है, तो उसे लोग पढ़ेंगे जरूर, लेकिन लाइक्स या कमेंट्स नहीं करेंगे, क्योंकि आपकी बात ही अपने आप में परिपूर्ण होगी। ज्यादा लाइक्स का अर्थ यह नहीं कि पोस्ट दमदार ही है.  सोशल मीडिया के नियम कुछ विचित्र है। जैसे सोशल मीडिया में फॉलो द लीडर का नियम नहीं लागू होता, वहां फॉलो द फॉलोअर्स का रूल चलता है। यानि जिसके ज्यादा फॉलोअर उसके और ज्यादा लाइक्स और हिट्स।

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डॉ. नागपाल का कहना है कि इंटरनेट माध्यम में लिखने के लिए आपको अलग शैली अपनानी चाहिए। जिस तरह अखबार और पत्रिकाएं सामग्री प्रकाशित करती है, वह शैली इंटरनेट पर ज्यादा पसंद नहीं की जाती। वाक्य छोटे हो, शब्द आसान हो और भाषा सरल हो। सोशल मीडिया पर कंटेंट को एडिट करने वाला कोई नहीं, इसलिए वहां सावधानी और जिम्मेदारी से लिखा जाना चाहिए। केरल में स्कूलों में ही छात्रों को आवश्यक कानूनों की जानकारी दी जाती है। दूसरे राज्यों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। अगर स्कूल के विद्यार्थियों को ही कानून की प्रमुख बातें पता होगी, तो वे कानून का पालन करने में बड़ी भूमिका निभा सकते है।

 

 

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