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क्या 51 सूत्रीय सिंहस्थ घोषणा पत्र में वास्तव में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं या यह केवल दिमागी कसरत, परम्परागत जोड़ - घटाव ही हैं? क्या ऐसे विचार महाकुम्भ से कुछ हासिल होगा या नहीं? ऐसी चिंताएं तीन दिन तक सोशल मीडिया पर छाई रहीं। उज्जैन के पास निनोरा गाँव में 12 से 14 मई तक विशाल और भव्य विचार महाकुम्भ आयोजित किया गया। विचार महाकुम्भ के आयोजन में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया, जिनमें अनेक धर्मगुरुओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरीसेन और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हुए। विचार महाकुम्भ के समापन के मौके पर जो 51 सूत्रीय सिंहस्थ घोषणापत्र जारी किया गया था उसमें तीन दिन हुई चर्चाओं का सार था।

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यह हालत सोशल मीडिया पर इसलिए देखने को मिली कि वहां तो हर रोज़, हर घंटे विचार महाकुम्भ होता ही रहता है। मीडिया से जुड़ा लगभग हर शख़्स खुद को किसी महामंडलेश्वर से कम नहीं समझता। ऐसे आयोजनों को सोशल मीडिया में बहुत समर्थन भी मिला है और आलोचना भी हुई है। अनेक लोगों ने आयोजन को अनावश्यक करार दिया तो कई ने इसे 'भ्रष्टाचार महाकुम्भ' भी कहा। कई लोगों की राय यह भी रही कि यह आयोजन, इस खर्च के दसवें हिस्से में भी हो सकता था.

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'सिंहस्थ 2016 : इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन लिविंग द राइट वे' नामक इस आयोजन अकाउंट ट्विटर पर भी खोला गया, जिसमें आयोजन के समापन तक केवल 468 ट्वीट पोस्ट किये गए थे। इतने विशालकाय आयोजन के ट्विटर अकाउंट को फॉलो करनेवाले केवल 640 निकले। इस सरकारी ट्विटर हैंडल की स्थिति से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर इस आयोजन को कैसा रेस्पोंस मिला ! फेसबुक पर भी इस आयोजन को लेकर सकारात्मकता कम ही देखने को मिली। लोगों ने लिखा कि सिंहस्थ महाकुम्भ में आयोजित विचार महाकुम्भ के अंतिम दिन पीएम नरेंद्र मोदी उज्जैन आये, लेकिन न तो बाबा महाकाल के दर्शन किये और न ही क्षिप्रा में आस्था की डुबकी लगाई। इसके लावा किसी संत के पंडाल में आशीर्वाद लेने नहीं गए, उलटे नागा साधुओं का (कथित) अपमान किया। जो लोग सोनिया गांधी जी की कुम्भ में आस्था पर सवाल करते हे अब वो अपने गिरेबान में झाँक लें। सोनिया जी प्रयाग के कुम्भ मेले में संगम में आस्था की डुबकी लगाई थी।

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इस तरह की पोस्ट के जवाब में मोदी समर्थकों ने लिखा कि नरेन्द्र मोदी विगत उज्जैन-सिंहस्थ 2004 में आये थे और उन्होंने क्षिप्रा भी किया था, लेकिन इस बार वे इसीलिए मेला क्षेत्र में नहीं गए, क्योंकि इसके लिए उनसे कहा गया था। अगर वे मेला क्षेत्र में जाते और स्नान पूजा आदि करते तो वीवीआईपी होने के कारण अव्यवस्था सकती थी। यानी फेसबुक पर इस तरह की बातें ही ज्यादा लिखी गईं.

इन सब से अलग हटकर एक दिलचस्प ख़याल यह भी व्यक्त किया गया कि भारत को अब गहन मौन में जाने की जरूरत है। हम तय करें कि अगले पांच साल तक सिर्फ काम करेंगे। कोई सभा, कोई मंच कोई भाषण, कोई उपदेश नहींं। हम यूएन में इस लिखित घोषणा के साथ सामने आएं कि इस तारीख से इस तारीख के बीच हमने तय किया है कि संतों समेत हमारे लीडर कुछ बोलेंगे नहीं। वे बिना तमाशे के तय करेंगे और सिर्फ काम करेंगे। अभी बेसुरे लोग कानों में पत्थर की तरह बरस रहे हैं। पूरा माहौल बकवास से भर गया है-विश्व गुरु बनेंगे, दुनिया हमारा लोहा मानेगी, यह करेंगे, वह करेंगे, हम यहां थे, हम वहां थे। कृपापूर्वक हम गरीबों पर दया कीजिए। बातों से बाज आइए। हमारी खून-पसीने की कमाई सही काम और सही जगह पर खर्च कीजिए। आपको मिले हर सेकंड का समझदारी से उपयोग कीजिए। उपदेश मत दीजिए।

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