जब मोबाइल फोन का आगमन हुआ, तब देश के अनेक कार्यालयों में कर्मचारियों द्वारा मोबाइल फोन के उपयोग पर रोक लगा दी गई थी। नियोक्ताओं को लगता था कि इससे कर्मचारी काम के समय गपशप करने में वक्त जाया करेंगे और अपने काम पर ध्यान नहीं देंगे। वह धारणा बेकार साबित हुई। दफ्तरों में कर्मचारियों के पास मोबाइल होने से उनकी संवाद क्षमता बढ़ गई और वे अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही संपर्क करने में सक्षम हो गए।
सोशल मीडिया के आगमन के बाद अनेक दफ्तरों में कर्मचारियोें के लिए सोशल मीडिया पर बैन लगा हुआ था। नियोक्ताओं को लगता था कि कर्मचारी दिनभर सोशल मीडिया पर चैटिंग करते रहेंगे और अपने काम को प्राथमिकता नहीं देंगे। वह दौर भी खत्म हो गया। अब वह दौर आ गया, जहां कुछ खास क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियां अपने कर्मचारियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करती है कि वे अपने ऑफिस में बैठे-बैठे सोशल मीडिया का उपयोग करें। नियोक्तओं को लगता है कि इससे कर्मचारियों की एकरसता तो टूटती ही है, उनका भी फायदा होता है, क्योंकि कर्मचारियों के निजी नेटवर्क का लाभ उठाने में कंपनियां भी सक्षम हो जाती है।
वर्तमान में मीडिया, विज्ञापन, फैशन उद्योग, इवेंट मैनेजमेंट, खेल संगठन आदि से जुड़ी कंपनियां और संस्थाएं अपने कर्मचारियों को कार्यालय के समय में सोशल मीडिया पर सक्रिय होने से नहीं रोकती। अनेक टीवी चैनल तो अपने कर्मचारियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते है कि वे सोशल मीडिया पर कार्यालय समय में सक्रिय रहे। कार्यालय में ही बैठे-बैठे वह अपने निजी फेसबुक पोस्ट अपडेट करते रहे और बार-बार ट्वीट भी करते रहे। उन्हें लगता है कि इससे वे कर्मचारियों के नेटवर्क का फायदा उठाने में सक्षम हो जाती है। इन संस्थाओं ने अपने कर्मचारियों के सामने शर्त रखी है कि वे अपनी कंपनी से जुड़ी खबरें अवश्य अपडेट करते रहे। इससे उन्हें यह फायदा है कि बिना कुछ खर्च किए, नए-नए टारगेट तक पहुंच जाती है।
अनेक कंपनियों ने अपने फेसबुक पेज बना रखे है। उन फेसबुक पेज को लाइक करने वालों की संख्या हजारों में होती है। कहीं-कहीं तो यह संख्या लाखों में भी है, लेकिन जब वे कंपनियां अपने सभी कर्मचारियों के नेटवर्क को जोड़ती है, तो पाती है कि कंपनी के फेसबुक पेज की तुलना में उसके कर्मचारियों के फेसबुक पेज के लाइक्स का योग कई गुना ज्यादा होता है। अगर कंपनियां अपने कर्मचारियों के नेटवर्क को माइनस कर दें, तो उनकी पहुंच सोशल मीडिया के टोटल नेटवर्क के दसवें हिस्से तक भी नहीं होती।
कंपनी के आधिकारिक पेज पर जो भी अपडेट होता है, वह बेहद औपचारिक होता है, जबकि कर्मचारी अगर खुद के पेज पर कोई कमेंट करें, तो वह ज्यादा अनौपचारिक होता है। ऐसे अनौपचारिक संवाद से कंपनी की विश्वसनीयता भी बढ़ती है। कंपनियों के एचआर विभाग के सभी लोग इससे सहमत हों, यह जरूरी नहीं है क्योंकि कई लोगों का यह मानना है कि कर्मचारी सोशल मीडिया नेटवर्क पर लगभग एक सी पोस्ट करते रहते है।
ऑटो मोबाइल क्षेत्र की कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों को, खासकर ऑफिस स्टॉफ को कार्यालयीन समय में सोशल मीडिया के उपयोग की अनुमति दी है। कर्मचारी यहां अपनी कंपनियों के उत्पाद की खूबियां अपने दोस्तों को बताते रहते है और इस तरह कंपनी के उत्पादों की खूबियां बिना किसी खास खर्च के प्रचारित होती रहती है। उपभोक्ता ऐसी सूचनाओं को ज्यादा विश्वसनीय मानता है कि क्योंकि उसे लगता है कि जो जानकारी उसे मिली है, वह कोई विज्ञापन के माध्यम से नहीं मिली, बल्कि कंपनी के भीतर बैठे उसके ही किसी दोस्त ने उसे यह जानकारी दी है।
फैशन और इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाली कंपनियां तो अपने कर्मचारियों को इस बात के लिए भरपूर प्रोत्साहन देती है कि वे अपने निजी नेटवर्क में कंपनी की गतिविधियों की सूचनाएं शेयर करते रहे। किसी फैशन शो की तैयारी से जुड़ी सूचना हो या किसी बड़े खेल आयोजन की तैयारियों की जानकारी। सोशल मीडिया पर ऐसी जानकारियों को पाने वाला अपने आप को दूसरे लोगों की तुलना में आगे समझता है। टीवी चैनल में काम करने वालों को भी इस तरह के सोशल मीडिया नेटवर्क का उपयोग करने की सुविधाएं मिली हुई है। समाचार चैनलों के कर्मचारी अपने निजी सोशल मीडिया नेटवर्क पर यह बात लिखते रहते है कि वे कौन-कौन से कार्यक्रम बनाने में व्यस्त है और उनका प्रसारण कब होने वाला है। जो काम कई फिल्म निर्माता लाखों रुपए खर्च करके करते है, वह काम सोशल मीडिया से जुड़े कर्मचारी अपने कंपनियों के लिए मुफ्त में कर देते है।