क्या आप सोते-जागते, उठते-बैठते सोशल मीडिया यूज करने के आदी हैं? क्या आप रह-रहकर अपना फेसबुक अकाउंट देखते रहते हैं? क्या ट्विटर देखे बिना आपको चैन नहीं पड़ता? क्या आप रह-रहकर इंस्टाग्राम पर अपनी पोस्ट पर लाइक्स गिनते रहते हैं? इसका मतलब यह है कि आप सोशल मीडिया के लती हो गए हैं और सोशल मीडिया आपके लिए बीमारी का रूप ले चुका है।
पिछले कुछ वर्षों से करोड़ों लोग सोशल मीडिया के लती हो गई है। अगर वे सोशल मीडिया न देखें, तो बेचैनी के शिकार हो जाते है। यह लत इस कदर हावी हो गई है कि अगर उनके मोबाइल की बैटरी घंटेभर के लिए भी ऑफ हो जाए, तो उनका मूड ऑफ हो जाता है। पश्चिमी देशों में अब इस बीमारी से निपटने के लिए लोग मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों की सलाह लेने लगे है। जिस तरह हमारे यहां आयुर्वेद के रिसोर्ट बने हुए है, उसी तरह सोशल मीडिया की लत से बाहर करने के लिए रिसोर्ट शुरू हो गए है। सोशल मीडिया से निजात दिलाने के लिए नए स्टार्टअप्स मैदान में आए है और वे कार्पोरेट वेलनेस के नाम पर अपना धंधा खड़ा कर रहे है। इस तरह के रिसोर्ट में सोशल मीडिया से दूर रहकर भी सामान्य जीवन जीने के तरीके बताए जाते है और ऐसे वर्कशॉप का शुल्क प्रतिघंटा 150 डॉलर से 500 डॉलर तक का है।
इन रिसोर्ट में पालतू पशु और पक्षियों के साथ घुलने-मिलने की कलाएं सिखाई जाती है, साथ ही तैराकी के प्रशिक्षण भी चलते है। साइकिल चलाने, पेड़ पर चढ़ने, संगीत वाद्य यंत्र बजाने आदि का प्रशिक्षण भी लिया जाता है। यह माना जाने लगा है कि सोशल मीडिया की अति मानसिक व्याधि बनती जा रही है। कैलीफोर्निया में मीडिया साइकोलॉजी रिसर्च सेंटर नाम की एक गैरव्यावसायिक कंपनी शुरू की गई है। इसका उद्देश्य समाज के अन्य क्षेत्र में व्यक्ति को जोड़ने का प्रयास करना है। ह्यूस्टन में चिकित्सक बाकायदा अपने मरीजों का इलाज कर रहे है। वहां के डॉक्टरों का कहना है कि सोशल मीडिया में लगे रहने की बीमारी पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
सोशल मीडिया का एडीक्शन अभी तक आधिकारिक तौर पर मानसिक व्याधि के रूप में रिकॉर्ड नहीं किया गया है। यह माना जाता है कि फेसबुक, ट्विटर, स्नैपचेट, इंस्टाग्राम आदि से लगातार जुड़े रहने पर हमारा दिमाग कुछ खास दिशाओं में सोच ही नहीं पाता। इसे शराब के नशे की तरह माना जा सकता है।
न्यूयॉर्क में एक नया स्टार्टअप शुरू हुआ है। इसका काम सोशल मीडिया से बीमारी की हद तक जुड़े रहने वाले लोगों को सलाह-मशविरा देना है। यह स्टार्टअप अपने मरीजों को व्यक्तिगत रूप से भी सलाह देता है और बारह सप्ताह का एक कोर्स भी चलाता है, जिसमें सोशल मीडिया के एडिक्शन से बचाव के रास्ते बताए जाते है। इस कंपनी से जब पूछा गया कि कितने लोग इसकी सेवाएं ले रहे है, तो उन्होंने इसकी संख्या बताने से इनकार कर दिया। यह कंपनी अपने ग्राहकों से हर महीने 138 डॉलर लेती है, इसकी चिकित्सा की पद्धति ऐसी है कि यह अपने हर एक मरीज को ई-मेल और टेक्स्ट मैसेज से सोशल मीडिया की लत मिटाने की लत बताती है। इस चिकित्सा के बाद भी अनेक लोग ऐसे है, जो अभी भी सोशल मीडिया पर ही चिपके रहते है। इस संस्था के पास इलाज कराने आए, कई लोग तो इलाज के तरीके से ही परेशान हो गए। इसका कारण यह है कि चिकित्सा के दौरान सोशल मीडिया के लत वाले लोगों से कई निजी सवाल पूछे गए थे, जिसका जवाब देना इन्हें गवारा नहीं हुआ।
लंदन में करीब तीन साल पहले ही डिजिटल डेटाक्स कंपनी खुल चुकी है। वहां की कुछ कंपनियों ने तो इस तरह का प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया है कि आप अपने कर्मचारियों को सोशल मीडिया का उपयोग सही तरीके से करना सीखाएं। यूरोप के कई देशों में वेतन का भुगतान कार्य दिवस ही नहीं, कार्य के घंटों के आधार पर किया जाता है। ऐसे में अगर कोई कर्मचारी सोशल मीडिया को लेकर तनाव में है, तो उससे कंपनी की उत्पादकता भी प्रभावित होती है। इस बात का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि एक बार सोशल मीडिया के चंगुल से बाहर आने के बाद यह दूरी सतत बनाई रखी जाए।
कुछ कंपनियों ने तो सेल्फ थैरेपी कोर्स भी शुरू कर दिए है। हर एक व्यक्ति की लत को खत्म करने के लिए एक ही फॉर्मूला काम नहीं कर सकता। इन कंपनियों का मुख्य ध्यान इस बात पर रहता है कि कर्मचारी किस तरह संतुलित रहकर कार्य करें। कर्मचारियों की उत्पादकता बनी रहे, इसमें कंपनियों की मुख्य रूचि होती है।