भूतपूर्व सेक्स बम जयललिता भले ही एम.जी.आर. की फिल्मों की नायिका रही हों - जानकी रामचंद्रन के लिए तो वे खलनायिका ही है। तमिलनाडू की राजनीति में वे छत पर से वूâदी थीं-तब तक तो उनका नाम हिन्दी विरोधी विचारों और टेक्स की चोरी की खबरों के कारण ही अखबारों की सुर्खियों में आता था। यों दक्षिण की सारी राजनीति ही फिल्मी है और फिल्में राजनीतिक है।
कुछ समय पहले की बात है। राज्यसभा में उपसभापति ने उन्हें ‘श्रीमती जयललिता’ कह दिया था। इस पर वे खफा हो गई थी। पर लोग कहते हैं कि एमजीआर ‘मुरूकन’ है। मुरूकन यानी तमिलों के देवता। जिनकी दो पत्नियां थी-वरली और देवसेना। लोग कहते हैं जानकी वरली हैं और जयललिता देवसेना।
जयललिता एमजीआर की फिल्मों की नायिका ही नहीं है। वे उनकी भक्तिन शिष्या और प्रशंसिका है। जब एमजीआर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई तब उन्होंने कहा था कि एमजीआर को तो नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए।
जयललिता मैसूर के आयंगार परिवार की हैं। उनके दादा मैसूर के राजा के डाक्टर थे। जयललिता का बचपन उन्हीं के सानिध्य में बीता, क्योंकि जब वे दो साल की थी, तभी उनके पिता का निधन हो गया। जयललिता पढ़ने-लिखने में तेज थी और वे वकील बनना या अंग्रेजी साहित्य में डाक्टरेट करना चाहती थी। पर उनका सपना साकार नहीं हो सका।
जयललिता की माँ संध्या चाहती थी कि उनकी बेटी बालासरस्वती अथवा यामिनी कृष्णमूर्ति की तरह नृत्यागंना बनें। और इसी मंशा से अधूरी रह गई। जयललिता की मां तमिल फिल्मों में अभिनय करती थी और एक मर्तबा वे अपने संग जयललिता को भी एक फिल्मी पार्टी में ले गई। तब जयललिता सोलह साल की थी। उस पार्टी में फिल्म निर्माता-निर्देशकों की नजर जयललिता पर पड़ी औैर ऐसे प्रस्ताव आए कि जयललिता फिल्म अभिनेत्री बन गई।
एक बार जयललिता फिल्मों में आ गई तो उन्हें वहां से निकलना मुश्किल लगा। १९७१ में उनकी मां संध्या का निधन हो गया। तब जयललिता ने फिल्मी दुनिया छोड़ने का निश्चय किया। पर तब उन्हें कई फिल्में पूरी करनी थी और उन्होंने अनेक फिल्मों के लिए ‘डेटस’ दे रखी थी। कुल मिलाकर उन्हें चार साल लग गए, इससे निकलने में।
१९७५ में फिल्में छोड़ने के बाद जयललिता ने चार साल तक पढ़ने-लिखने में बिताए। उन्हीं के शब्दों में-मैंने चार साल तक अपने आप को खोजा।’ इस दौरान उन्होंने इतिहास और विज्ञान की किताबें और आत्मकथाएं पढ़ी। गांधीजी, अन्नादुरै, विवेकानंद और ई.वी. रामास्वामी नायकर का सारा विचार साहित्य पढ़ा। पांच साल बाद १९८० में उन्होंने पैâसला कर लिया कि वे राजनीति में आएंगी। दो साल बाद उन्होंने अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक की सदस्यता ग्रहण की ओर एमजीआर को अपना गुरू घोषित किया।
‘गुरू’ के प्रताप से जयललिता ने राजनीति में चमत्कारिक प्रगति की। उन्हें बच्चों के पोषण आहार कार्यक्रम और ग्रामीण आत्मनिर्भरता योजनाओं के पार्टी का प्रभारी बना दिया गया। बाद में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भी भेजा। जयललिता की राजनीतिक प्रगति के कई कारण थे। एक तो वे एमजीआर की फिल्मों में नायिका रह चुकी थी। दूसरे वे ब्राह्मण हैं और एमजीआर जयललिता को आगे बढ़ाकर अपनी हिन्दू विरोधी छवि तोड़ना चाहते थे। यह बात अलग है कि जयललिता ने कभी भी खुद को ब्राह्मण नहीं कहा।
एमजीआर का अपनी पार्टी के लोगों में बहुत विश्वास नहीं था। इसलिए उन्होंने जयललिता को दिल्ली में अपना राजदूत बनाया। जयललिता ने एमजीआर की इच्छाएं पूरी भी की। राज्यसभा में अपनी सक्रियता से।
एमजीआर की बीमारी के दौरान उनकी पत्नी जानकी एमजीआर और अन्य लोगों ने उनका प्रभाव कम करने की कोशिश की। तब उन्होंने कहा था कि सेहत के कारण एमजीआर कुछ सोचने और करने की दशा में नहीं है और उन्हीं के लोगों ने उन्हें वैâदी बना रखा है। एमजीआर की मौत से शायद सर्वाधिक राजनैतिक नुकसान जयललिता को ही हुआ है
जयललिता हिन्दी जानती है और उन्होंने धर्मेन्द्र के साथ ‘इज्जत’ नामक हिन्दी फिल्म में भी काम किया है। पर वे त्रिभाषा फार्मूले के खिलाफ है और हिन्दी को नापसंद करती है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी