सेम नुयोमा अब गोरों की मदद चाहते हैं, उनका कहना है कि हमें पिछली बातें भूल जानी चाहिए। उन्होंने दक्षिण अप्रâीका की श्वेत सरकार से भी रिश्ते बना लिए हैं।शेफीशुना सेम्युअल नुयोमा आजाद नामीबिया (दक्षिण पश्चिम अप्रâीका) के पहले राष्ट्रपति बने हैं। नुयोमा ही है, जिन्होंने नामीबिया की आजादी के लिए तीस साल से भी ज्यादा समय तक संघर्ष किया। यह खूनी संघर्ष और यातनापूर्ण था। कामरेड नुयोमा ने अंतत: विजयश्री पाई।
वह अप्रâीका के सबसे सम्पन्न देश नामीबिया के सबसे बड़े दल साउथ बेस्ट अप्रâीकन पीपुल्स आर्गनाइजेशन (स्थायी) के प्रमुख भी है।
नामिब रेगिस्तान के देश नामीबिया की आजादी केवल १७ लाख है। (यानी पुणे के बराबर) लेकिन नुयोमा का महत्व ुणिे के महापौर से दर्जनों गुना ज्यादा है। नामीबिया एक पूरा देश है और उसका क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का एक चौथाई है। नामीबिया के पास सोने और दूसरी धातुओं के विशाल भंडार है और बहुमूल्य मछलियों से भरे हुए समुद्र तट भी। लेकिन अब तक नामीबिया की इस १७ लाख आबादी का शोषण वहां के ७८ हजार श्वेत करते रहे हैं। नुयोमा ने उनकी मुखालफत हमेशा की है।
लेकिन नुयोमा गोरों की मदद चाहते हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद वह कहते हैं कि हमें पिछली बातें भूल जानी चाहिए और ऐसे काम करने चाहिए जिससे नामीबिया के सभी लोगों का भला हो। यहां तक कि उन्होंने दक्षिण अप्रâीका की श्वेत सरकार से भी काम चलाऊ रिश्ते बना लिए हैं।
नामीबिया का मुक्ति संघर्ष १९४६ से जारी था। उस मुक्ति के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई का नेतृत्व किया था मुयोमा ने।
अपनी स्वूâली पढ़ाई नुयोमा बड़ी मुश्किल से पूरी कर पाए। पढ़ाई के बाद उन्हें अपना पेट भरने के लिए रेल्वे में बेयरे की नौकरी करनी पड़ी। बाद में उन्होंने स्थानीय नगरपालिका में क्लर्वâ की नौकरी की। नौकरी के दिनों में ही वह ट्रेड यूनियन से जुड़ गए। ट्रेड यूनियन से संबंध होने के कारण उनका वह काम भी छीन लिया गया और फिर उन्हें एक किराना दुकान में काम करना पड़ा। उन्हीं दिनों उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अवम्बीलैंड पीपुल्स आर्गेनाइजेशन (ओपीओ) में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाई। उसकी नई शाखा खोली और उसके प्रमुख बन गए। मई १९५९ में जब साउथ वेस्ट अप्रâीका नेशनल यूनिट नामक पार्टी गठित हुई तो वह उसके सदस्य बन गए। तब वह ३० साल के थे।
वह और उनकी पार्टी गोरों की व्यवस्था के खिलाफ सदा संघर्ष करते रहे। विंडहोक कस्बे में जब नगरपालिका ने अश्वेतों को उनकी जगह से हटाना चाहा तब उन्होंने जम कर विरोध किया। इस कारण पुलिस ने नरसंहार किया। तेरह लोग मारे गए और नुयोमा को जेल हो गई। यह १९५९ की बात है। नुयोमा जेल से फरार हो गए और बोत्सवाना, तंजानिया होते हुए घाना पहुंच गए। दस साल तक उन्होंने निर्वासित जीवन बिताया।
१९६० में ओपीओ का नाम नदलकर स्वापो कर दिया गया। तभी नुयोमा इसके अध्यक्ष बनाए गए। १९६१ में नुयोमा तंजानिया चले गए और वहां उन्होंने स्वापो का क्षेत्रीय मुख्यालय बनाया। वहां से नुयोमा दुनिया भर में घूमते रहे और नामीबिया की आजादी के लिए भूमिका तैयार करते रहे।
१९६४ में उनके संगठन स्यापो को आर्गनाइजेशन आफ अप्रâीकन यूनिटी की सदस्यता मिली। १९७३ में संयुक्त राष्ट्र ने स्यापो को मान्यता दी और १९७९ में निर्गुट आंदोलन ने स्यापो को सदस्य बना लिया।
पिछले साल अप्रैल में ही नुयोमा अपने देश लौटे थे। संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में गत वर्ष वहां चुनाव कराए गए थे, तब स्वापो को बहुमत मिला। नुयोमा को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुना गया था।
६१ वर्षीय नुयोमा शादीशुदा है। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। आज नामीबिया में कई नेता हैं, लेकिन उन्हें चुनौती देने वाले नहीं। वह नामीबिया के राष्ट्रपिता जो हैं।
प्रकाश हिन्दुस्तानी