पंवार को पार्टी तोड़ने और बनाने का अच्छा अनुभव है। अगर इस कार्य के लिए कोई विश्वविद्यालय डिग्री देता तो वे ‘डॉक्टरेट’ के पात्र होते। मौके का फायदा वैâसे उठाया जाता है ‘इसके श्रेष्ठतम उदाहरण शरद पंवार ने पेश किए हैं। वे जानते हैं कि अफवाहों की शुरूआत वैâसे की जाती है और उनसे फायदे किस तरह उठाए जाते है। वे ‘परपेâक्ट प्रोपेâशनल राजनीतिज्ञ’ है।
महाराष्ट्र के पत्रकारों से दूसरे राज्यों के पत्रकार ईष्र्या करते थे, क्योंकि उन्हें इंटरव्यू के लिए लगभग हर साल नया मुख्यमंत्री मिल जाताा था। लेकिन लगता है कि १९९० का साल पत्रकारों को यह ‘सौभाग्य’ नहीं देगा। भगवा सापेâवाले मुख्यमंत्री के बजाए पत्रकारों को पुराने मुख्यमंत्री शरद पंवार से ही काम चलाना पड़ेगा।
बाल ठाकरे उन्हें ‘सर्वपक्षीय चालू मुख्यमंत्री’ कहते हैं यानी वे सभी दलों के मुख्यमंत्री जैसे है। लोग कहते हैं कि वे संभवत: देश के सबसे मालदार राजनीतिज्ञ है। अंतुले को शायद उनसे ईष्र्या हे तभी तो वे उन पर आरोप लगा चुके हैं कि एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री का स्विस बैंक में मोटा सा खाता है।
लेकिन ये सब बातें तो मजाक है। सच बात तो यह है कि शरद पंवार एक कुशल नेता है। उन्हें सत्ता पक्ष की राजनीति भी आती है और विपक्ष की भी। वे सत्ता पक्ष में भी पार्टी की अंदरूनी लड़ाई के एक अच्छे ज्ञाता है। उद्योगपति, बिल्डर और शक्कर लॉबी उनके पीछे सदा रहती आई है और वे खुद ऐसे अफसरों को पसंद करते हैं जो काम करने औैर कराने में माहिर होते हैं। उनकी दूसरी विशेषता जनता से जुड़ने की है। दादा पाटील के बाद जनता से जुड़े राजनेता का श्रेय शरद पंवार को ही है।
दिसंबर १९८६ में वे जब राजीव गांधी की कांग्रेस में वापस आए थे, तब उन्होंने साफ-साफ कहा था कि मैं कांग्रेस में अपना आत्मसम्मान बेचकर नहीं रहूंगा। दिल्ली दरबार में बार-बार जाकर हाजिरी बजाने के बजाए मैं वापस अपने गांव जाकर खेती करना पसंद करबंगा। शरद पंवार ने यह बात साबित कर दिखाई। वे दिल्ली दरबार में बार-बार मत्था टेकने नहीं गए। यहां तक कि उन्होंने टिकटों के बंटवारे में भी अपनी मनमानी की।
शरद पंवार को पार्टी तोड़ने और बनाने का अच्छा अनुभव है। अगर इस कार्य के लिए कोई विश्वविद्यालय डिग्री देता हो तो वे ‘डाक्टरेट’ के पात्र होते। १२ साल पहले उन्होंने कांग्रेस से हटने में अपना लाभ देखा और वे अलग हो गए और महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बन गए। बाद में वे विपक्ष की राजनीति करते रहे और फिर दस साल तक महाराष्ट्र की कई महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाओं को जन्म देते रहे। वे कांग्रेस में वापस आए और फिर मुख्यमंत्री बने।
‘मौके का फायदा वैâसे उठाया जाता है’ इसके श्रेष्ठतम उदाहरण शरद पंवार ने पेश किए हैं। वे जानते है कि अफवाहों की शुरूआत वैâसे की जाती है और उनसे फायदे किस तरह उठाए जाते हैं। वे ‘परपेâक्ट प्रोपेâशनल राजनीतिज्ञ’ है, तभी तो पुणे के ेक गांव से महाराष्ट्र की सबसे शक्तिशाली कुर्सी तक का सफर तय कर सके।
यह शरद पंवार का स्वर्ण जयंती वर्ष (पैदाइश १२ जिसंबर १९४०) है। उन्होंने राजनीति की सीढ़ियां बहुत ही जल्दी-जल्दी चढ़ी है। २० की उम्र में महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने, २७ में विधायक, ३२ में मंत्री और ३८ में मुख्यमंत्री। ४५ के होते-होते वे समाजवादी कांग्रेस नामक विरोधी दल के अध्यक्ष बन चुके थे।
यशवंतराव चव्हाण शरद पंवार को अपना दत्तक पुत्र मानते थे, वे ही उन्हें राजनीति में आगे लाए थे। बसंतदादा पाटील उनके सबसे बड़े राजनैतिक विरोधी थे क्योंकि शरद पंवार उन्ही की ‘पीठ में छुरा भौंक कर’ मुख्यमंत्री बने थे।
शरद पंवार पुणे विश्वविद्यालय से बी.कॉम. है। उन्हें पढ़ाई के दौरान ही राजनीति का चस्का लगा था। आज वे सफल किसान भी है और बारामती का कायाकल्प करने वाले भी। १९६७ में उनकी शादी प्रतिभा शिंदे से हुई थी, तभी दोनों ने पैâसला कर लिया था कि परिवार नियोजन अपनाएंगे और एक ही संतान को जन्म देंगे, चाहे वह लड़का हो या लड़की। (शरद पंवार के पांच भाई व दो बहनें है)। उनकी एक ही बेटी है सुप्रिया, जो लंदन में डाक्टरी पढ़ रही है।
प्रकाश हिन्दुस्तानी