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कांग्रेस (स) के कोचीन अधिवेशन से लौटकर प्रकाश हिन्दुस्तानी

दिनमान : 29 मई - 04 जून 1983

कांग्रेस (समाजवादी) के नेता चाहे जितनी डींगे हांवेंâ, पर वे खुद अपनी औकात जानते हैं। यह एक अच्छी बात है। जब किसी को अपनी औकात मालूम होती है, तब वह यथार्थ के नजदीक होता है, कोचीन में लगा कि कांग्रेस (स) का नजरिया ज्यादा यथार्थवादी है। शायद इसीलिए कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस (स), राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसके प्रमुख नेता गुजरात के रतूभाई अडाणी हैं) और श्री हेमवतीनंदन बहुगुणा की लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का विलय जल्द से जल्द किया जाए। इसके लिए एक समिति बनाई जा चुकी है।

लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के नेता श्री हेमवतीनंदन बहुगुणा ने कांग्रेस (स) के कोचीन अधिवेशन के दौरान आयोजित रैली को संबोधित करके यह सिद्ध किया कि विलय की छटपटाहट उनमें भी है। अकेले-अकेले चुनाव लड़ने पर इन तीनों पार्टियों की क्या हालत होगी, यह बात इनके नेता जानते हैं, इसलिए ये तीनों पार्टियां एक हो रही हैं, ताकि ‘इंका का विकल्प’ बन सवेंâ, लेकिन यििद ये तीनों मिल जाए तो भी क्या दिल्ली पर कब्जा कर सकते हैं? अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता और यदि तीनों मिल भी जाए तब भी नहीं।

जिस पार्टी का ‘प्रभुत्व’ केवल महाराष्ट्र और केरल में हो और वह ‘प्रभुत्व’ भी ऐसा हो कि महाराष्ट्र में २८० विधायकों में उसके दस विधायक और केरल में १४० में से सात, वह पार्टी यदि दावा करें कि वह इंका का विकल्प बन सकती है तो नके बालसुलभ दावे को कितनी गंभीरता से लिया जा सकता है?

इसीलिए नौ और दस मई को कोचीन में हुए कांग्रेस (स) के अधिवेशन में एक बात और कही गई। हम समान विचारधारा वाली पार्टियों से और वाम मोर्चे की पार्टियों में भी समझौता करेंगे। यह ‘समान विचारधारा वाली’ पार्टियों से सहयोग की बात इतनी बार कही गई कि लोगों को लगने लगा कि कांग्रेस (स) का अना कोई अस्तित्व ही नहीं है।

बहरहाल कांग्रेस (स) लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय कांग्रेस के विलय की तैयारियां पूर्णता की ओर हैं। श्री बहगुणा के शब्दों में उस दिशा में हो रही प्रगति ‘आशा से ज्यादा अच्छी’ है और अब जो नई पार्टी बनेगी उसके नाम के बारे में विचार चल रहा है। अब तक जो नाम प्रस्तावित हुए हैं वे हैं समाजवादी कांग्रेस, लोक-कांग्रेस और जनता कांग्रेस, लेकिन अभी नाम के बारे में अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

कांग्रेस (स) के अध्यक्ष शरद पवार ने स्पष्ट घोषणा की है कि कोई भी समझौता उद्देश्यपूर्ण, स्पष्ट और कार्यक्रम-केन्द्रित होगा। किसी भी दूसरी पार्टी मे विलय या गठबंधन केवल कांग्रेस के नाम पर कांग्रेस के उसूलों पर और कांग्रेस की विचारधारा पर ही किया जाएगा। हमारे सूल वही हैं जो श्री लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के थे। हम कांग्रेस के असली विचारों का झंडा उठाए रहेंगे, भारतीय जता पार्टी से कोई गठबंधन नहीं किया जाएगा। क्योंकि वह समान विचारधारा वाली पार्टी नहीं है, लेकिन यदि मौका आया तो उससे चुनावी समझौता कर लिया जाएगा। दूसरे दलो से समझौता करने की कितनी छटटाहट कांग्रेस (स) में हैं, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिवेशन शुरू होते ही एक प्रस्ताव पारित कर जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की पदयात्रा का स्वागत किया गया।

कांग्रेस (स) के अध्यक्ष शरद पवार ने दक्षिण के चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों की संयुक्त परिषद का स्वागत किया और आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में हुए जल समझौते की सराहना करते हुए कहा कि राज्यों को ऐसे मामले खुद ही निपटा लेने चाहिए आर्थिक, राजनैतिक और अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में उन्होंने इंदिरा गांधी और उनकी सरकार को असफल बताया और कहा कि केन्द्र सरकार के रिश्ते पंजाब और असम के बजाय पाकिस्तान और बांग्लादेश से ज्यादा मधुर हैं।

कांग्रेस नामक संगठन के इतिहास में पहली बार किसी अधिवेशन में ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें राष्ट्रपिित और राज्यपालों के कामकाज पर टिप्पणी की गई। गत १९ नवंबर १९८२ को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्मदिन पर राष्ट्रपति श्री जैलसिंह द्वारा प्रधानमंत्री आवास (१, सफदरजंग रोड) जाने पर क्षोभ व्यक्त किया गया। असम के मामले में वहां के राज्यपाल की गतिविधियों के बारे में भी टिप्पणी की गई।

अधिवेशन में यह बात जोर देकर कहीं गई कि कांग्रेस (स) ही वह पार्टी है, जो सही मायनोंं में समाजवादी समाज की रचना के लिए प्रतिबद्ध है, यहीं पार्टी असली कांग्रेस है। इस पार्टी का विरोध प्रकट करे का तरीका शांतिूर्ण सत्याग्रह और असहयोग है। इसके नेता और कार्यकर्ता अपने निजी आचरण में भी पूरी शुद्धता बरतेंगे।

अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की गी कि नौकरियों के लिए आवेदकों की आयु-सीमा तीस वर्ष की जाए और तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को भी नौकरियों के साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना चाहिए। एक अन्य प्रस्ताव में ंजाब विधानसभा को तुरंत भंग करने की मांग की गई। चंडीगढ़ को तुरंत पंजाब को सौंप देने और उर्दू के मामले में गुजराल समिति की सिफारिशों की तुरंत मनाने की मांग की गई। महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें अत्याचारों से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बनाने की मांग की गई। बच्चों के अधिकारों का एक राष्ट्रीय घोषणापत्र तैयार किए जाने की भी मांग की गई।

गुजरात की राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता श्री रतूभाई अडाणी इस अधिवेशन के मौके पर आने वाले थे, लेकिन वे नहीं आए। उनके नहीं आने के कारण नहीं बताए गए, लेकिन केरल प्रदेश कांग्रेस (स) के अध्यक्ष श्री पी.सी. चाको के अनुसार श्री अडाणी पोरबंदर के उपचुनाव में व्यस्त होने के कारण हीं आए। जब मैंने यही बात भूतपूर्व सांसद और केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (स) के महासचव श्री रामचंद्रन कडनपल्ली से पूछी तो वे नाराज होकर कहने लगे ‘रतूभाई कोई कांग्रेस (स) के सदस्य नहीं हैं। उनके बारे में आप हमसे क्यों पूछ रहे हैं?’ इन तमाम कमियों के साथ अधिवेशन के अवसर पर आयोजित यह रैली कोचीन के इतिहास की शायद सबसे बड़ी रैली थी, इसमें दो लाख से ज्यादा व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। राज्यभर के कांग्रेस (स) के कार्यकर्ता करीब १२०० बसों में बैठकर कोचीन पहुंचे थे। इस रैली को सड़क से गुजरने में पांच घंटे लगे थे। श्री बहुगुणा े रैली को संबोधित करते हुए कहा, प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी जनवरी के पहले देशभर में मध्यावधि चुनाव करा सकती हैं, इसलिए जरूरी है कि समान विचारधारा वाली पार्टियां एक होकर मैदान में उतरे? तीन दलों के विलय की कोशिशों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस (स), राष्ट्रीय कांग्रेस और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के विलय की दिशा में हो रही कार्रवाई अपेक्षा से ज्यादा तेजी से हो रही है। श्री बहुगुणा कांग्रेस (स) के अधिवेशन में नहीं गए, लेकिन कांग्रेस (स) की रैली को संबोधित करने का मतलब भी यही है कि वे कांग्रेस (स) के काफी नजदीक पहुंच गए है।

अधिवेशन के अपने शुरुआती भाषण में कांग्रेस (स) के अध्यक्ष श्री शरद पवार ने कहा कि केरल में कांग्रेस (स) का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने श्री एंटोनी का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ लोग समझते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ता अब भी उनके साथ है, लेकिन ऐसा नहीं है। हजारों कार्यकर्ता जो कांग्रेस (स) छोड़कर गए थे, अब वापस हमारी पार्टी में आ गए हैं।

वास्तव में केरल के करीब चालीस विधायक कांग्रेस (स) छोड़कर श्री ए.के. एंटोनी के साथ चले गए थे। तब यह लगने लगा था कि अब केरल से कांग्रेस (स) का अस्तित्व ही खत्म हो गया है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। श्री पी.सी. चाको के नेतृत्व में कांग्रेस (स) का संगठन छोटे-छोटे कस्बों और गांवों में तैयार किया गया, जिसका परिणाम अधिवेशन के दौरान साफ देखने में आ गया था। हजारों नौजवान अधिवेशन की कार्रवाई में हिस्सा ले रहे थे। दरअसल युवकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कांग्रेस (स) ने केरल में पूरी ताकत लगा दी है। इस अधिवेशन में ज्यादातर युवा ही आगे रहे। अखिल भारतीय युवक कांग्रेस (स) का आगामी अधिवशन तीन माह बाद नौ अगस्त को पुणे में होगा। नौ अगस्त ‘भारत छोड़ो’ का नारा देने वाला ऐतिहासिक दिन है।

कांग्रेस (स) के कार्यकर्ताओंं को सक्रिय बनाने का काम इन दिनों जोरों पर है। महाराष्ट्र में पिछले तीन महिनों में कांग्रेस (स) के अध्यक्ष श्री शरद पवार ने तूफानी जनसंर्वâ दौरान किया। वे किसानों, छात्रों और मजदूरों से मिले। वे किसानों, छात्रों और मजदूरों से मिले। महाराष्ट्र के ३४ में से २७ जिलों में, २८० विधानसभा क्षेत्रों में से २३० विधानसभा क्षेत्रों में ११० कॉलेजों में और दो विश्वविद्यालयों में वे गए। जनसंपर्वâ का यही काम केरल में प्रदेश अध्यक्ष श्री पी.सी. चाकों कर रहे हैं। उन्होंने पंचायत स्तर पर पार्टी संगठन को खड़ा कर दिया है। अधिवेशन में देशभर के करीब तीन हजार कार्यकर्ता और नेता आए थे। नेताओं में वेदव्रत बरुआ, अंबिका सोनी, के.पी. उन्नीकृष्णन, राजबहादुर, भोला पासवान शास्त्री, रामलखनसिंह यादव, शरदचंद्र सिन्हा, बी.बी. राजू, तुलसीदास दासप्पा, डॉ. जयंत बैनर्जी, रामनाथ पांडे, सुरेश कमलाड़ी, बैरिस्टर राजा भोंसले, एन. रेड्डी और रामनाथ मिर्घा आदि थे। ये नेता और कार्यकर्ता पूरे देश से आए। सिक्किम और हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्यों में भी प्रतिनिधि आए थे।

दरअसल अधिवेशन कोचीन में करने का भी मकसद यही था कि कांग्रेस (स) का वहां कोई स्वरूप बन कर सामने आए। दिल्ली में सरकार बनाने का सपना शायद उसकी आंखों में नहीं है, लेकिन आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के उदाहरण उसके सामने हैं, जहां इंका की सरकारें नहीं हैं, अब दक्षिण में केरल ही है, जहां इंका मुख्यमंत्री है, शरद पवार को लगता है कि मेहनत करने पर उन्हें भी हटाया जा सकता है। यो कांग्रेस (समाजवादी) उनकी संगठन क्षमता के बल पर ही तो टिकी है।

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