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विकिलिक्स के जुलियन असांजे के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए धन इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया गया है। इसके लिए 5 लाख डाॅलर एकत्र करने का लक्ष्य है। इसमें अभी तक 801 डॉलर ही जमा हो पाए है। ब्रिटेन में जुलियन असांजे की गिरफ्तारी और फिर अमेरिका प्रत्यर्पण करने की तैयारी की जा रही है, उसी के खिलाफ यह अभियान चलाया गया है। अभियान का नाम है गो फंड मी। इसके लिए जुलियन असांजे की तरफ से अपील भी जारी हुई है। अमेरिका में असांजे को आजीवन कारावास भुगतनी पड़ सकती है। अभी जुलियन असांजे एक्वाडोर में निर्वासित जीवन जी रहे हैं और अमेरिका उस पर दबाव डाल रहा है कि असांजे को अमेरिका के हवाले कर दें। 2012 में असांजे को अमेरिकी न्यायालय में पेश होना था, लेकिन असांजे तभी से लापता हैं।
सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान की बातें, तो अकसर होती ही रहती है। यह भी कहा जाता है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित बना देता है। कुछ लोग सुबह उठते ही पहला काम सोशल मीडिया पर अपनी हाजिरी दर्ज़ कराने में लगाते है। आधी रात को उनकी नींद खुल जाए, तब भी और यहां तक कि गुसलखाने में भी वे सोशल मीडिया का उपयोग नहीं छोड़ते। कुछ लोगों के लिए ई-मेल देखते रहना जरूरत हो सकती है, लेकिन अधिकांश लोग केवल यहीं दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर बने रहते हैं कि वे भी मैदान में हैं और सक्रिय हैं। ऐसे कई लोग हैं, जिनके पास अपने परिवार के लोगों से मिलने और बात करने का समय नहीं है, लेकिन वे सोशल मीडिया पर हर पल हाजिरी देने के लिए समय निकाल ही लेते हैं।
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट में दावा किया गया था कि देश के 68 पत्रकारों, लेखकों और पूर्व नौकरशाहों को मोदी सरकार के खिलाफ लिखने के लिए दो से पांच लाख रुपए प्रतिमाह दिया जा रहा है। यह भी दावा किया जा रहा था कि यह भुगतान कैम्ब्रिज एनेलिटिका कंपनी के माध्यम से हो रहा था। एक प्रमुख वेबसाइट के अनुसार इन सभी 68 लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को बदनाम करने के लिए ठेका दिया गया था और वे अपने काम को अंजाम दे रहे थे। वेबसाइट के अनुसार ये लोग इसीलिए मोदी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।
केन्द्र सरकार चाहती है कि प्रिंट और टेलीविजन की तरह सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर भी गैरकानूनी बातें लिखने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकें। सरकार ने इसके लिए पहल शुरू की है। गैरकानूनी कंटेंट के बारे में सरकार ने मसौदा तैयार किया है कि क्या-क्या कानून बनाए जा सकते है। इसी के साथ सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से कहा गया है कि वे इस बारे में सरकार की मदद करें कि गैरकानूनी कंटेंट की शुरुआत कहा से हो रही है और उसे पहचानने के तरीके क्या-क्या हो सकते है। सरकार यह भी चाहती है कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म सरकार की इच्छा के अनुसार मदद करने के लिए आगे आए और ड्रॉफ्ट के मसौदे पर अपनी राय दें। इसके लिए सरकार ने 15 जनवरी 2019 तक सलाह मांगी है।
2018 मीडियाकर्मियों के लिए अच्छा नहीं रहा। खासकर रिपोटर्स के लिए। 2018 में जितनी संख्या में पत्रकारों की हत्या हुई, उतने पत्रकार तो युद्ध की रिपोर्टिंग करते हुए भी नहीं मारे गए। गत 3 साल से मीडिया पर हो रहे हमलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस तरह के हिंसक हमलों के साथ ही मीडिया पर लगने वाले आक्षेपों का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार प्राप्त सूचनाओं को सही माने, तो इस वर्ष 80 से अधिक पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। इसके अलावा 60 से अधिक पत्रकार बंधक बनाए जा चुके है और करीब 350 पत्रकारों को विभिन्न देशों में हिरासत में रखा गया है। इसके अलावा पत्रकारों के विरुद्ध घृणा फैलाई जा रही है, उनका अपमान भी किया जा रहा है और उन पर तरह-तरह के दबाव डाले जा रहे है। भारत में भी पत्रकारों की हत्या के मामले सामने आए है।
एक दौर था जब शहरों और कस्बों में अलग-अलग तरीके के मार्केट हुआ करते थे। कपड़े, किताबें, खिलौने, जूते आदि के बाजार अलग-अलग लगते थे। फिर उसकी जगह माॅल्स ने ले ली। ये मॉल्स साल में एक बार लगने वाले मेलों की तरह हो गए, जो 365 दिन खुले रहते है। यहां मनोरंजन के अलावा खानपान और खरीदारी के लिए भी बहुत कुछ है। अब लोगों को साल में एक बार लगने वाले मेले का इंतजार नहीं करना पड़ता। मॉल में गए और सारी खरीदारी कर ली। सब्जी खरीदने से लेकर व्हॉइट गुड्स तक, सिनेमा देखने से लेकर ब्यूटी पार्लर में जाने तक सब चीजें एक ही जगह उपलब्ध हैं।