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जब से डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका फर्स्ट की बात पर जोर दिया है। कई देशों ने फर्स्ट के अपने-अपने दावे सोशल मीडिया पर कर दिए है। इंडिया ने नहीं किया। इंडिया तो फर्स्ट से ऊपर है। अमेरिका फर्स्ट के दावे के तत्काल बाद नीदरलैंड के कलाकारों ने यू-ट्यूब पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें दावा किया गया था कि अमेरिका फस्र्ट है, तो नीदरलैंड सेकंड। उसके बाद यूरोप के कई देशों ने दावा किया कि तरक्की के मामले में अमेरिका के बाद अगर किसी का नंबर है, तो वह उसका ही है। इन देशों में स्विटजरलैंड, डेनमार्क, जर्मनी, पुर्तगाल, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, कजाकिस्तान, मोरक्को और बेल्जियम आदि है। इन सभी वीडियो का फॉर्मेट एक जैसा है और आवाज डोनाल्ड ट्रम्प की आवाज से मिलती-जुलती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के सलाहकारों ने युवाओं के कार्यक्रम में जाने की एक नई पहल की है, इसमें वे अलग-अलग विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों से मिलते हैं और बातचीत करते हैं। इसके अलावा रिपब्लिकन पार्टी के भी कई प्रमुख नेता इस तरह के चर्चा सत्र में शामिल होने वाले हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की इलेक्शन कैम्पेन मैनेजर और अब अमेरिकी राष्ट्रपति की एडवाइजर केलयान कॉनवे ने 24 फरवरी, शुक्रवार को अमेरिकी कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सलाह दी है कि वे सोशल मीडिया से दूर रहें, खासकर ट्विटर से। युवाओं को उनकी सलाह है कि वे ऑनलाइन के बजाय रियल लाइफ में जीवन जीना सीखें। यह अचरज की बात है कि अमेरिकी युवा सोशल मीडिया के एडिक्ट होते जा रहे हैं। यह उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। उनका कहना है कि सोशल मीडिया संवाद का एक जरिया मात्र है, यह अपने आप में खुद कोई संवाद नहीं है।
रूस अब एक अलग तरह की शक्ति बन गया है। यह शक्ति सैन्य शक्ति नहीं है, न ही कोई आर्थिक शक्ति है, यह शक्ति है रूस का साइबर पॉवर। रूस ने अपने अर्थ तंत्र और युद्ध तंत्र से अलग एक ऐसा सोशल मीडिया का तंत्र विकसित कर लिया है, जो उसकी तरफ से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़ाइयां लड़ता है। इस तंत्र में हैकर्स, सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स, ट्रोल्स आदि है। रूस अब अपने इस नए हथियार का उपयोग दुनिया की राजनीति को प्रभावित करने में कर रहा है। यूरोप के अधिकांश देश रूस के इस नए आक्रमण से परिचित तो हैं, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे है।
क्या टि्वटर पर दिलचस्प और प्रगतिशील संदेशों से लड़कियों को प्रभावित किया जा सकता है? जवाब है नहीं। यह प्रयोग किया एक मशहूर अंग्रेजी मैग्जीन ने। जो नतीजे निकले, वे दिलचस्प हैं। टि्वटर पर आप अपना संदेश दे सकते है, सूचनाएं पहुंचा सकते है, अपनी प्रगतिशीलता का प्रचार कर सकते है, लेकिन लड़कियों को इम्प्रेस नहीं कर सकते। इसका कारण यह है कि लड़कियां आसानी से प्रभावित नहीं होती। अगर आप प्रगतिशील होने का दिखावा करें, तब भी वे आपकी बात भाँप जाती हैं। कुल मिलाकर खट्टे अंगूर खट्टे ही बने रहते है।
कई शरीफ माने जाने वाले लोग सोशल मीडिया पर गंदे ट्रोल क्यों करते हैं? क्यों किसी की मजाक उड़ाते हैं? क्यों दूसरों को नीचा दिखाते हैं? उनमें इतना साहस क्यों नहीं कि वे खुलकर अपनी बात कह सकें? वे गिरोहबंदी करके क्यों सामने आते हैं? उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का यही हाल रहा है। गुरमेहर कौर का प्रकरण देखें, तो उसमें भी लगभग ऐसा ही हुआ। कई परिपक्व लोग भी सोशल मीडिया पर भड़ास निकालते नजर आए। अगर वे लोग पूरे मामले को समझते, तो शायद इतने ट्रोल नहीं करते।
शुक्रवार, 24 मार्च की सुबह ट्विटर इंडिया ने एबीवीपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट सहित कुल 7 अकाउंट सस्पेंड कर दिए थे। एबीवीपी की आपत्ति के बाद वे सभी खाते वापस खोल दिए गए। सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म को एबीवीपी ने काफी गंभीरता से लिया और खाते वापस खोले जाने को अपनी जीत करार दिया।